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विधिपूर्वक स्वाध्याय करने पर
क्योंकि-स्वाध्याय से प्रशस्त ध्यान रहता है और सर्व परमार्थ जाना जा सकता है क उसमें लगे रहने से क्षण - क्षण में वैराग्य प्राप्त होता है। उचलोक, अधोलोक और तिर्यक्लोक, नरक, व्योतिषी, वैमानिक तथा सिद्धि आदि सकल लोक, अलोक स्वाध्याय करने वाले को प्रत्यक्ष के समान रहते है।
यह सुन प्रसल हो श्येन सेठ सम्यक् रीति से गृही-धर्म स्वीकार कर तथा स्वाध्याय का अभिग्रह लेकर मुनि को नमन कर अपने घर आया । पश्चात् वह सदैव धर्म-कार्य में रत रहकर उत्तम स्वाध्याय करता रहा। इस प्रकार समय पाकर उसके पास बहतसाधन हो गया तथा पुत्र, पौत्रादिक सन्तान बढ़ी। अब बहुतसी अहएं होने से वे परस्पर किसी प्रकार कटकट करने लगी और उनके कहने से पुत्र भी स्नेह-हीन हो कलह करने लगे।
उनको कलह करते देख सेठ ने अलग कर दिया। तब उन्होंने सेठ के रहने का जो मुख्य घर था वह मांगा, तो उसने वह भी उनको दे दिया। अब उसको सेठानी कहने लगी कि- तुम द्रव्य सहित अपना घर पुत्रों को देकर अब किस प्रकार निर्वाह करोगे? तब सेठ बोला कि- जिसके मन रूप क्यारे में जिन - धर्म रूप कल्पतरु विद्यमान है, उसे घर, धन वा अन्य कुछ किस गिनती
तब सेठानी उसे कहने लगी कि- ठीक, तो अब सिर मुडा कर भीख मांगो और श्मशान, देवालय वा सुनसान घरों में रहो। सेठ बोला कि-हे सुतनु ! धीरज रख, यह भी समय आने पर करुगा, किन्तु अभी तो तुझे इस लोक में धर्म का कैसा प्रभाव है सो बताता हूँ। यह कह कर वह तत्काल अपने मित्र मंत्री के