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श्येन सेठ का दृष्टांत
पास जाकर कुटुम्ब का सब वृत्तान्त कहकर उससे एक घर मांगने लगा।
तब मंत्री बोला कि मेरे एक घर है किन्तु वह सदोष है अर्थात् उसमें व्यंतर के घुस जाने से वह उजड़ पड़ा है, जिससे उसमें कोई भी नहीं रहता। अतः जो धर्म के प्रभाव से व्यन्तर तुझे कोई पराभव न करे तो खुशी से ले तब श्येन सेट तुरन्त शकुन ग्रंथि बांधकर उस घर में आया।
वह निसीही बोल, अनुज्ञा ले घर के अन्दर आ ईर्यावही प्रतिक्रमण करके इस प्रकार स्वाध्याय करने लगा । हे जीव ! गजसुकुमाल, मेतार्यमुनि तथा स्कंधक सूरि के शिष्य आदि के साधुओं के चरित्र स्मरण करता हुआ, इतने ही में क्यों कोष करता है ?
जो महा सत्ववान होते हैं वे प्राण जाते भी कोप नहीं करते और तू ऐसा हीनसत्व है कि- वचन मात्र में भी ऋद्ध होता रहता है । हे जीव ! जीवों को सुख दुःख होने में दूसरा तो निमित्र मात्र है, अतः अपने पूर्व कृत्य का फल भोगते हुए तू . दूसरे पर किसलिये व्यर्थ कुपित होता है ? ___ अहो! अहो ! मोह से मूढ हुए जीव वैभव व घर में मूर्षित होकर पुत्र व मित्रों को भी मार डालते हैं और चतुर्गति रूप संसार में रखड़ते हैं इस प्रकार उसने रात्रि के दो प्रहर पर्वत वहां स्वाध्याय किया इतने में व्यंतर उसे सुन हर्षित होकर कहने लगा कि
मैं इस संसार समुद्र में डूब रहा था, किन्तु तूने मुझे नौका के समान तारा है, मैं देखता हूँ और मैंने ही इस घर को उजड़