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आनन्द श्रावक का दृशंत
इतने में वाणिज्यग्राम में वीर प्रभु का समवसरण हुआ, उनकी आज्ञा से भिक्षा लेने के हेतु गौतम स्वामी नगर में आये । वे भिक्षा लेकर वापस फिरे, इतने में उन्होंने लोगों के मुह से आनन्द का अनशन सुना, जिससे वे कोल्लाक सन्निवेशस्थ पौषधशाला में गये। .
तब उनको नमन करके आनन्द श्रावक पूछने लगा कि हे भगवन् ! क्या गृहस्थ को अवधिज्ञान उत्पन्न हो सकता है ? तब वे बोले कि-हां, उत्पन्न होता है । तब उनके सन्मुख उसने अपने को उपजी हुई अवधि का प्रमाण कह सुनाया, तब सहसा गौतम स्वामी इस भांति कहने लगे कि:- "हे आनंद ! गृहवास में निवास करते गृहस्थ को अवधिज्ञान उत्पन्न होता है, यह बात सत्य है, परन्तु इतना बड़ा नहीं होता, अतः हे आनन्द ! तू इस की आलोचना ले, प्रतिक्रमण कर, निन्दाकर, गर्दी कर, निवृत्ति कर, विशुद्धिकर और यथा योग्य तपकर्म रूप प्रायश्चित अंगीकार कर । तब आनन्द, भगवान गौतम स्वामी को कहने लगा किः- हे भगवन् ! क्या जिनवचन में ऐसा है कि वर्तमान तथ्य-तथाभूत सद्भूत भावों की भी आलोचना व प्रायश्चित लेना चाहिये ? गौतम स्वामी बोले कि-ऐसा कैसे हो सकता है ? " तब आनंद बोला कि- जो ऐसा है तो हे भगवन् ! आप ही इसकी आलोचना आदि लीजिये।
तब आनन्द के ये वाक्य सुनकर गौतम स्वामी दुविधा में पड़े हुए उसके पास से रवाना होकर दूतीपलाश चैत्य में जहां भगवान् श्री महावीर थे, वहां आये, आकर आहार पानी बताया, पश्चात् उनको बन्दना व नमन करके इस प्रकार कहने लगे: