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थावचा पुत्र का दृष्टांत
है सो यात्रा है । हे भगवन यापनीय क्या है ? हे शुक ! यापनीय दो प्रकार का है:--इन्द्रिय यापनीय और नोइन्द्रिय यापनीय । - इन्द्रिय यापनीय याने क्या ? हे शुक ! जो मेरे श्रोत्र, चक्षु, घाण, जिव्हा और स्पर्शेन्द्रिय कायम होकर वश में रहती हैं, सो इन्द्रिय यापनीय है। नोइन्द्रिय यापनीय याने क्या ? हे शुक ! जो क्रोध, मान, माया और लोभ उपशान्त रहकर उदय नहीं होते सो नोइन्द्रिय यापनीय है । अव्याबाध याने क्या ? हे शुक ! जो मुझे वात, पित्त, कफ व सन्निपात से उत्पन्न होने वाले अनेक रोग और आतंक उदय नहीं होते सो अव्याबाध है। ..... प्राशुक विहार याने क्या ?
हे शुक ! मैं जो आराम, उद्यान, देवल, सभा तथा प्रपाओं में स्त्री, पशु, पंडक रहित वसति को छोड़कर प्रातिहारिक पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक लेकर विचरता हूँ सो प्राशुक विहार है । हे पूज्य ! सरिसवय ( समान वय वाले अथवा सरसव) भक्ष्य हैं वा अभक्ष्य हैं ? . हे शुक ! सरिसवय दो जाति के हैं:--मित्र सरिसवय और धान्य सरसत्र । मित्र तीन जाति के हैं:--सहजात, सहवर्धित
और सहपांशुक्रीडित । ये श्रमणों को अभक्ष्य हैं। धान्य सरसव दो जाति की है:--शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरिणत, उनमें अशस्त्र परिणत अभक्ष्य हैं।
शस्त्र परिणत सरसव पुनः दो प्रकार को है:-प्राशुक और अप्राशुक, उसमें अप्राशुक अभक्ष्य है। प्राशुक दो प्रकार की है:-याचित और अयाचित, उसमें अयाचित अभक्ष्य है । याचित पुनः दो प्रकार की है:--एषणीय और अनेषणीय, उसमें अनेषणीय अभक्ष्य है।