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शीलवान का सविकार वचन वर्जन भेद का स्वरूप
वह भी क्रोध से भरी हुई होने से बोली कि क्या तेरे हाथ कट गये थे, कि जिससे सींके में से भोजन लेकर खाया नहीं।
इस प्रकार कठोर वचन से उन दोनों ने निकाचित कर्म संचित किया, और अत्यन्त उग्र जड़ स्वभाव के कारण उसकी उन्होंने आलोचना व निंदा भी नहीं की। वे दान गुणयुक्त थे
और संयम रहित थे जिससे मध्यम गुण वाले थे उनकी कुछ शुभ भावना के व्यवहार से आयुष्य पूर्ण हुई । जिससे वह लड़का तेरा बन्धुदत्त जामाता हुआ और वह दरिद्र स्त्री तेरी बंधुमती पुत्री हुई।
भवितव्यता वश तथा कर्म प्रकृति की विचित्रता के कारण माता स्त्री हुई, और पुत्र पति हुआ । उस कर्म के विपाक से बंधुमती के हाथ कटे और बंधुदत्त ने शूली पर चढने का दुःख पाया।
यह सुन रतिसार सेठ महा संवेग को प्राप्त हो गुरु से दीक्षा लेकर सुखी हुआ । इस प्रकार उद्भट वेष धारण करने वाली बंधुमती को प्राप्त हुआ विपाक सुनकर, हे निर्मल शीलवान भव्य जनों ! तुम देशादिक अविरुद्ध वेष धारण करो।
इस प्रकार बंधुमती का वृत्तान्त है। शीलवन्त जन का उद्भट वेष वर्जन यह तीसरा भेद कहा । अब सविकार वचन वर्जन रूप चौथा भेद कहने के हेतु गाथा का उत्तरार्द्ध कहते हैं।
सवियारपियाई नूणमुईरंति रागग्गिं । . मूल का अर्थ--सविकार कहे हुए वाक्य निश्चयतः रागरूप अग्नि बढ़ाते हैं।
टीका का अर्थ--सविकार जल्पित याने शृंगारयुक्त वाक्य