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शीलवान का बालक्रीड़ा रूप पांचवा भेद का स्वरूप
क्रुद्ध हो मित्रसेन को कहने लगा कि अरे ! तू तो कोई भडुआ जान पड़ता है, यह कहकर उसे मजबूती से बांध दिया ।
यह सुन राजा ने शीघ्र ही उसे 'छुड़ाया, और कहा कि - -व्रत के अतिचार रूप वृक्ष का तुझे यह फूल मिला है। इसका फल तो अंधेरे नरक में तीव्र वेदनाएँ पाना होगा, क्योंकि उस समय मेरे मना करने पर भी तू अतिचार से निवृत्त नहीं हुआ ।
अतः हे मित्र अब भी जिनेश्वर देव तथा सुसाधु गुरु का स्मरण कर दुष्कृत की गर्हा कर व समस्त जीवों को खमा। तब वह बोला कि - हे मित्र ! मैं गाढ़ बन्धन से पीड़ित हो गया हूँ अतः मैं कुछ भी स्मरण नहीं कर सकता, इसलिये मेरी कुछ औषध ( भैषज ) की व्यवस्था कर ।
इस प्रकार बोलता हुआ, वह मरकर विंध्याचल में हाथी हुआ, वहां से बहुत से भव भ्रमण करके मोक्ष पावेगा । विकार युक्त वचन रूप समुद्र का शोषण करने में अगस्त्य ऋषिसमान चन्द्र राजा पुत्र को राज्य सौंपकर, दीक्षा ले मोक्ष को गया । इस प्रकार पापहीन पंडितों ने अपने चित्त से मित्रसेन का चरित्र जानकर महान् दुःखदायक सविकार भाषण त्यागना चाहिये ।
इस प्रकार मित्रसेन की कथा है।
इस प्रकार शीलवानजन का सविकार - वचन - वर्जनरूप चौथा शील कहा, अब बालक्रीड़ा - परिहार रूप पांचवा शील कहने के हेतु आधी गाथा कहते हैं ।
बालिसजनकीला विहु मूलं मोहस्स णत्थदंडाओ ।
मूल का अर्थ - बाल क्रीड़ा भी अनर्थदंड युक्त होने से मोह की मूल है। बालिश जन क्रीड़ा याने बाल जनों से की जाने