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धनमित्र का दृष्टांत
भी नहीं दिया। इस प्रकार दुःख सहते हुए पृथ्वी पर भ्रमण करते उसने एक समय गजपुर नगर में गुणसागर नामक केवल ज्ञानी गुरु को देखा।
उसे कर्न का विवर प्राप्त होने से वह अत्यादर पूर्वक गुरु के चरणों में नमन करने लगा, तब वे मुनीश्वर उसे इस प्रकार योग्य धर्म कथा कहने लगे कि- धर्म से मनुष्य धनवान होते हैं, धर्म से उत्तम कुल में जन्म मिलता है, धर्म से दीर्घ आयुष्य होती है तथा धर्म से पूर्ण आरोग्य प्राप्त होता है, धर्म से चारों समुद्रों के अन्त वाले भूमंडल में निर्मल कीर्ति फैलती है, वैसे ही धर्म से कामदेव से भी अधिक रूप मिलता है। ___भवनपति देवताओं के मणि-रत्नों की प्रभा से चारों दिशाओं को जामगाते हुए भवन में जो सुख भोगे जाते हैं वह सब धर्म का माहात्म्य है तथा चक्रवर्ती के चरणों में हर्ष के बल से जो उद्भ्रान्त होकर राजाओं का समूह नमन करता है वे शुद्ध धर्मरूपी कल्पवृक्ष ही के पुष्प हैं, ऐसा मैं मानता हूँ।
हर्षे युक्त सुरांगनाओं के हाथ से डुलते हुए चंचल और सुन्दर चामरों के मुकुट वाला देवलोक का इन्द्र भी धर्म के प्रभाव ही से होता है । अधिक क्या कहें ? धर्म ही से सकल सिद्धियां होती हैं तथा धर्म रहित जीवों को कभी भी फलसिद्धि नहीं होती। .
यह सुनकर धनमित्र हाथ जोड़कर आचार्य को नमन करके कहने लगा कि-हे मुनीश्वर ! आपने कहा सो ठीक ही है।
हे प्रभु ! मुझे जन्म से ही दुःख पड़ता आ रहा है, जिसे कि आप अपने ज्ञान से जानते ही हो । अतः उसका क्या कारण है ? तब गुरु बोले कि- हे भद्र ! इस भरत में विजयपुर नगर में