________________
परगृह गमन वर्जन पर
सहद पसंतो धम्मी - उम्भडवेसो न सुन्दरो तस्म । मूल का अर्थ- धर्मी जन सादा होने पर शोभता है, उसको उद्भट वेष अच्छा नहीं लगता। ____टीका का अर्थ-धर्मकान याने भाव श्रवक, प्रशांत याने सादे वेष वाला होके तो शोभे । अतः हलके मनुष्यों को उचित उद्भट वेष उसे सुन्दर नहीं लगता।
लंख के समान नीचे कसता हुआ ओला. पायजामा पहिरना अथवा ऊपर ओको अंगी पहिरना, वैसे ही पच डाल कर फेंटा बांधना यह खिङ्गजनों का वेष कहलाता है । वैसे ही पाटिये डालकर कपाल खुला रखना तथा नाभिप्रदेश खुला रखना तथा आधी कंचुको (कांचलो) पहिर कर पार्थ खुले रखना यह वेश्या का वेष है। ___ इत्यादि वेष धार्मिक जन को सुन्दर नहीं लगते याने शोभा नहीं देते। ऐसे वेष से वह उलटा उपहास का पात्र होता है, कारण, कहावत है कि-जिसे श्रृगार प्यारा होता है वह कामी होता है, तथा वह, इस लोक में भी किसी समय अनर्थ पाता है, बंधुमती के समान।
दूसरे आचार्य भी ऐसा कहते हैं किजिससे अंग ठीक तरह से इंक जावे वैसा नीचे का परिधान तथा स्वच्छ मध्यम लम्बाई का अंगरखा वा चोली व ऊपर योग्य रीति से पहिरा हुआ उत्तरीय वस्त्र-ऐसा वेष धर्म तथा लक्ष्मी की वृद्धि करता है।
अनुद्भट परिधान वह है कि-पैर तक धोती पहिरना तथा उस पर लगता हुआ अंगरखा वा चोली पहिरना आदि । यह