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थावचा पुत्र का दृष्टांत
चान्यभाषा
एषणीय दो प्रकार को है:-लब्ध और अलब्ध, उसमें अलब्ध अभक्ष्य है। मात्र जो लब्ध हो, सो श्रमण निग्रंथों को भक्ष्य है। इस कारण से हे शुक! ऐसा कहता हूँ कि, सरिसवय भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है।
इसी भांति कुलत्था के लिये भी जान लेना चाहिये, उसके दो प्रकार हैं, यथा-कुलस्था याने कुलीन स्त्री और कुलत्या याने कुलथी धान्य। ___ कुलस्था स्त्री तीन प्रकार की है:-कुलकन्या, कुलमाता,
और कुलवधू । कुलथी धान्य के लिये सरसवानुसार भेद करके जान लेना चाहिये । इस भांति माष के लिये भी जान लेना चाहिये, माष तीन जाति के हैं--अर्थमाष, कालमास और धान्य माष। __कालमास बारह हैं:-श्रावण से आषाढ़ पर्यन्त, वे अभक्ष्य हैं । अर्थ माष दो प्रकार के हैं:--हिरण्य माष व सुवर्ण माष, वे भो अभक्ष्य है । धान्य माष, ( उड़द ) के विषय में सरसवानुसार भेद करके समझ लेना चाहिये।
आप एक हैं ? दो हैं ? अक्षय हैं ? अव्यय है ? अवस्थित हैं ? अनेक भाव वाले हैं ? । हे शुक! मैं एक भी हूँ, दो भी हूँ, और यावत् व अनेक भाव वाला भी हूँ।
हे शुक ! द्रव्यार्थनव से मैं एक हूँ, ज्ञान दर्शन रूप से मैं दो हूँ । प्रदेशार्थनय से अक्षय, अव्यय और अवस्थित हूँ, उपयोग से अनेक भाव वाला हूँ। यह सुन शुक बोध प्राप्त कर गुरु को विनय करने लगा कि-मैं आप से हजार परिव्राजकों के साथ दीक्षा लेना चाहता हूँ। सूरि ने कहा- प्रमाद मत करो, तब उसने संतुष्ट हो कुलिंगी का लिंग त्याग कर सपरिवार दीक्षा ग्रहण की।