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आयतन सेवन पर
दीक्षा महोत्सव करने को राज-चिह्न मांगे। तब श्रीकृष्ण संतुष्ट होकर कहने लगे कि-धर्म के हेतु जिसका ऐसा निश्चय है, उसे धन्य है । अतः (हे सार्थवाहिनी !) तू निचित रह, मैं स्वयं ही दीक्षा महोत्सव करूगा। __पश्चात् श्रीकृष्ण उसके घर जाकर थावच्चाकुमार को कहने लगे कि- हे वत्स ! तू सुख भोग, क्योंकि भिक्षा महा दुःख मय है । तब थावश्चाकुमार बोला कि-हे स्वामी! भय से जो अभिभूत हो उसे सुख कहां से हो ? अनः सर्वे भय का भगाने वाला धर्म ही करना चाहिये। ___श्रीकृष्ण बोले:- मेरी बाहु-छाया में वसते हुए, हे वत्स ! तुझे भय है ही नहीं, और यदि हो तो बतादे, ताकि मैं झट उसका निवारण कादू। तब थावच्चाकुमार बोला कि-जो ऐसा ही है तो, मेरी ओर आती हुई जरा व मृत्यु का निवारण करिये, कि जिससे मैं निश्चित मन से, हे स्वामी ! भोग सुख भोगू। ____ तब राजा बोले कि-हे सुन्दर ! इस जीव लोक में ये दो दुर्वारि हैं, इनका निवारण करने को इन्द्र भी समर्थ नहीं, तो हम किस प्रकार निवारण कर सकते हैं ? क्योंकि संसार में जीवों को कर्म वश जरा-मरण प्राप्त होता है, तब थावचाकुमार बोला कि- इसी से मैं कमां का नाश करना चाहता हूँ। . उसका इस भांति निश्चय देखकर श्रीकृष्ण बोले कि - तुझे धन्यवाद है, हे धीर ! तू प्रसन्नता से प्रव्रज्या ले व तेरा मनोरथ पूर्ण हो। ____अब श्रीकृष्ण ने अपने घर आकर, सारी नगरी में इस प्रकार उद्घोषणा कराई कि-" थावच्चाकुमार मोक्षार्थी होकर दिक्षा लेता