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व्रत ज्ञान के उपर तुगिया नगरी श्रावक का दृष्टांत
____ मन से महासंवेग धारण कर तीव्र अनुराग से सेवा करते थे। · तब वे स्थविर भगवंत उन श्रमणोपासकों को और उस महान् पर्षदा को चतुर्याम धर्म सुनाने लगे। ___तब वे श्रमणोपासक उन स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार पूछने लगे
जो संयम का फल अनाश्रव है और तप का फल निर्जरा है तो किस कारण से देव देवलोक में उत्पन्न होते हैं ?
तब उनमें से कालिक पुत्र नामक स्थविर उन श्रमणोपासकों को इस प्रकार कहने लगे
हे आर्यों ! पूर्व तप से देव देवलोक में उत्पन्न होते हैं। · आनन्दरक्षित नामक स्थविर इस प्रकार बोले:पूर्व संयम से देव देवलोक में उत्पन्न होते हैं।
महल नामक स्थविर इस प्रकार बोलेःकार्मिको क्रिया से देव देवलोक में उत्पन्न होते हैं।
काइपय नामक स्थविर इस प्रकार बोले___ हे आर्यों ! सांगिकी क्रिया से देवता देवलोक में उत्पन्न होते हैं । अतः पूर्व तप, पूर्व संयम, कार्मिकी और सांगिकी क्रिया से देव देवलोक में उत्पन्न होते हैं, यह बात सत्य है, आत्म भावत्व से देव नहीं हुआ जाता। __ तब वे श्रावक स्थविरों से ऐसे उत्तर पाकर, हर्षित हो, उनको वन्दना तथा नमन कर, प्रश्न पूछ व अर्थ ग्रहण करके उठ खड़े हुए।