________________
४८
व्रत ग्रहण के विषय में प्रश्नोत्तर
कोई शंका करे कि-भला श्रावक देशविरति का परिणाम होवे तब व्रत ले कि उसके बिना भी लेता है । जो देशविरति का परिणाम हो, तो फिर गुरु के पास जाने का क्या काम है ? जो साध्य है वह अपने आप ही सिद्ध हो गया है, क्योंकि-व्रत लेकर भी देश विरति का प.रेगाम ही साधने का है वह उसे स्वयं ही सिद्ध हो गया है व उससे गुरु को भी कष्ट तथा योग में अंतराय डालने का दोष दूर होगा । अब दूसरा पक्ष लेते हो तो दोनों को मृपावाद का प्रसंग उपस्थित होगा साथ ही परिणाम बिना पालन भी नहीं हो सकेगा। ____ यह सब दूसरों की शंका अनुचित है, क्योंकि-दोनों प्रकार से लाभ दृष्टि आती है वह इस प्रकार है देशविरति परिणाम आया हुआ होने पर भी गुरु से व्रत लेने से उसका माहात्म्य रहता है तथा मुझे सद्गुणवान् गुरु को 'आज्ञा पालना ही चाहिये, इस प्रकार प्रतिज्ञा के लिये निश्चय होने से व्रतों में दृढता होती है तथा जिनाज्ञा भी आराधित होती है।
कहा है किः-- गुरु की साक्षी से धर्म करने से सर्व विधि संपन्न होने से वह अधिक उत्तम होता है वैसे ही साधु के समीप त्याग करने से तीर्थकर की आज्ञा भी (आराधित) होती है व गुरु का उपदेश सुनने से प्रगटे हुए विशेष कुशल अध्यवसाय से कर्म का अधिकतर क्षयोपशम होता है और उससे अल्प व्रत लेने के इच्छुक भी अधिक व्रत लेने में समर्थ होते हैं, इत्यादिक अनेक गुण गुरु से व्रत लेने वाले को होते हैं। है. वैसे ही जो अभी तक विरति का परिणाम नहीं आया हो, तो भी गुरु का उपदेश सुनने से वा निश्चय पूर्वक पालन करने