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व्रत ग्रहण की विधी
वे उठकर स्थविरों को तीन बार वन्दना कर, नमन कर, पुष्पवती चैत्य से लौटकर जिस दिशा से आये उसी दिशा को चले गये। ___ तदनन्तर वे स्थविर वहां से विहार कर आसपास के प्रदेश में विचरने लगे। - (इस प्रकार भगवती सूत्र के पाठ से कथा कहकर अब आचार्य उपसंहार करते हैं-)
इस प्रकार गुणगण से आळ्य, जिन प्रणीत सात तत्त्व में विदग्ध, प्रतिज्ञा में अभग्न रहनेवाले तुगिका के श्रावक सुख के भाजन हुए।
इस प्रकार तुगिका नगरी के श्रावकों की शास्त्र संबंधी पवित्र विचारों में कुशलता सुनकर जिन भाषित व्रत के भंग, भेद और अतिचार आदि के निमेल तत्व ज्ञान में भव्य जनों ने निमग्न होना चाहिये।
इस प्रकार तुगिका नगरी के श्रावकों का दृष्टांत है । व्रत कर्म में ज्ञान रूप दूसरा भेद कहा, अब ग्रहण रूप तीसरा भेद कहने के हेतु आधी गाथा कहते हैं ।
गिण्हइ गुरूण मूले इत्तरमिअरं व कालमह ताई।
मूल का अर्थ-गुरु से थोड़े समय के लिये अथवा यावज्जीवन वह व्रत लेता है। ____टीका का अर्थ--ग्रहण करता है याने स्वीकारता है गुरु के मूल में अर्थात् आचार्यादिक से, आनन्द श्रावक के समान--यहां