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अनर्थदंड विरमण व्रत का अतिचार
हिंसन शील सो हिंस्र याने शस्त्र, अग्नि, हल, ऊखल, विष आदि । ऐसी वस्तुएं दूसरों को देना सो हिंस्रप्रदान । ____ कृषि आदि कार्य पापं का हेतु होने से पाप कर्म गिना जाता है, उसका उपदेश सो पापकर्मोपदेश । इस तरह चार प्रकार से अनर्थदंड है, उससे विरमना सो अनर्थदंड विरमण ।
इसके भी पांच अतिचार वर्जनीय हैं यथाः- कंदर्प, क्रौकुच्य, मौखर्य, संयुक्ताधिकरणता और उपभोग-परिभोगातिरेक ।
वहां कंदर्प अर्थात् काम-उसके उद्दीपक हास्यप्रद तथा विविध वाक्य प्रयोग भी काम के हेतु होने से कंदर्प कहलाते हैं । ___ दूसरों को हंसाने वाली अनेक भांति की नेत्र-संकोच के साथ भांडों के समान चेष्टाएं करना सो क्रौकुच्य । __ये दो अतिचार प्रमादाचरित के हैं क्योंकि ये उसी रूप
___ मुख से बक बक करने वाला सो मुखर याने वाचाल उसका काम सो मौखर्य-याने कि धृष्टता पूर्ण असत्य-असंबद्ध बकना यह पापकर्मोपदेश का अतिचार है क्योंकि-मुखरपन होने ही से पापकर्मोपदेश होता है।
जिसके द्वारा आत्मा नरक की अधिकारी हो वह अधिकरण वे तुणीर, धनुष्य, मूसल, उखल, अरघट्ट आदि हैं वे संयुक्त याने काम करने के योग्य तैयार करके रखना उसे संयुक्ताधिकरण कहते हैं, उन्हें नहीं रखना चाहिये ।
क्योंकि वैसे तैयार अधिकरण को देखकर उनको दूसरे भी मांगने को तैयार होते हैं, यह हिंस्रप्रदान का अतिचार है।