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अतिथी संविभाग व्रत का अतिचार
कहा है कि-तिथिपर्वोत्सवाः सर्वे त्यक्तायेन महात्मना ।
- अतिथि तं विजानीया-च्छेषमभ्यागतं विदुः ।। जिस महात्मा ने तिथी पर्व के सर्व उत्सव त्याग किये हों, उसे अतिथी जानना चाहिये व शेष को अभ्यागत । ... उस तिथि को संगत याने निर्दोष न्यायार्जित कल्पनीय वस्तुओं का श्रद्धा और सत्कार पूर्वक भाग याने अंश देना सो अतिथिसंविभाग कहलाता है, भाग देने का यह कारण है किउससे पश्चात्कर्म न करना पड़े। . ...
इसके भी पांच अतिचार हैं- सचित्तनिक्षेप, सचित्तपिधानं, कालातिक्रम, परव्यपदेश और मत्सरिकता. वहां सचित्त पृथिव्यादिक में साधु को देने की वस्तु रख छोड़ना सो सचित्तनिक्षेप । __ वैसी ही वस्तु को सचित्त कुष्मांडफल आदि से ढांक रखना सो सचित्तपिधान ।
काल याने साधु को उचित भिक्षा समय का अतिक्रम याने नहीं देने की इच्छा से पहिले अथवा पीछे खा कर उल्लंघन करना सो कालातिक्रम। ___पर का याने दूसरे का है ऐसा व्यपदेश करना, अर्थात् साधु को देने योग्य वस्तु अपनी होते हुए न देने की इच्छा से “ पराई है मेरी नहीं " इस प्रकार साधु के सन्मुख बोलना सो परव्यपदेश। . मत्सर याने साधुओं के मांगने पर क्र द्ध हो जाना अथवा अमुक रंक होते हुए देता है तो मैं क्या उससे भी हीन हूँ कि न