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देशावकाशिक व्रत का वर्णन और अतिचार
कहा है कि सामायिक लेकर उसमें घर की चिन्ता करे, इच्छानुसार बोले और शरीर को भी वश में न रखे उसका सामायिक निष्फल होता है।
अब देशावका शिक रूप दूसरा शिक्षाप्रत कहते हैं, वहां दिखत में लिये हुए सविस्तृत दिक् प्रमाण को देश में याने संक्षेप विभाग में अवकाश याने अवस्थान सो देशावकाश उससे बना हुआ सो देशावकाशिक-अर्थात् लंबे रखे हुए दिपरिमाण का संकोच करना सो देशावकाशिक व्रत है। ___ यहां भी पांच अतिचार वर्जनीय है यथा:-आनयनप्रयोग, प्रेष्यप्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात और बहिःपुद्गलप्रक्षेप ।
इसका तात्पर्य यह है किः-उपाश्रय आदि नियत स्थान में रहकर दिक्प्रमाण का संकोच करने के अनन्तर जब व्रत भंगके भय से स्वयं बाहर न जाकर दूसरे के द्वारा संदेशा भेजकर आवश्यकीय वस्तु मंगाने का प्रयोग करे तथा प्रयोजन वश सेवक को निश्चित क्षेत्र से बाहिर भेजे तथा निश्चित क्षेत्र से बाहिर खड़े हुए किसी व्यक्ति को देखकर व्रत भंग के भय से स्वतः न बुला सकने से उसे बुलाने के हेतु खंकारे अथवा अपना रूप बतावे तथा अमुक व्यक्ति को बुलाने के हेतु ही से क्षेत्र से बाहिर पत्थर आदि पुद्गलं फेके तब पांच प्रकार से देशावकौशिक व्रत को अतिचार लगावे। - इस व्रत के करने का यह मतलब है कि-जाते आते में जीव घातादिक आरंभ न हो।
तब वह आरंभ स्वयं किया अथवा दूसरे से कराया, उसमें परमार्थ से कुछ भी अन्तर नहीं, उलटा स्वयं चलकर जाने से