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पांचवा व्रत का अतिचार
भंग होने के भय से प्रथम के क्षेत्र वा स्थान के समीप दूसरा लेकर प्रथम वाले के साथ मिलाने के लिये वाड़ आदि दूर करके उसमें जोड़ देने से व्रत की अपक्षा रखने से तथा कुछ रूप से विरति को बाधा करने से अतिचार लगता है ।
हिरण्य याने चांदी, सुवर्ण प्रसिद्ध है, उनके प्रमाण का प्रदान याने दूसरे को दे देने के द्वारा अतिक्रम करना सो अतिचार है जैसे कि-किसी ने चातुर्मास को सोमा बांध कर हिरण्यादिक का प्रमाण किया हो, उसको उस समय संतुष्ट हुए राजादिक से उसकी अपेक्षा अधिक प्राप्त हो जाय, तब व्रत भंग के भय से वह दूसरे को कहे कि-मेरे व्रत की अवधि पूर्ण हो जाने पर मैं ले लूगा, तब तक तू सम्हाल यह कह वह दूसरे को दे दे, तो यहां व्रत की अपेक्षा रहने से अतिचार है। .. ____ धन चार प्रकार का है गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य, वहां गणिम याने सुपारी आदि, धरिम सो मंजिष्ठ आदि, मेय सो घृत आदि और परिच्छेद्य सो माणिक आदि, धान्य सो जव आदि, इनके प्रमाण का बंधन द्वारा अतिक्रम करना सो अतिचार है जैसे कि-किसी को परिमाण करने के अनन्तर प्रथम किसी को दिया हुआ अथवा अन्य किसी के पास से मिले तो व्रत भंग के भय से वह दूसरे को कहे कि-चारमास के उपरान्त अथवा घर में भरा हुआ धान्य बिक जाने पर मैं ले लूंगा, तब तक तू रख, इस भांति बंधन याने ठहराव करके अथवा मूठे में भरकर वा सत्यकार (सट्टा) करके अंगीकृत कर जब देने वाले के घर ही पर रहने दे, तब अतिचार मानना चाहिये।
द्विपद याने पुत्र, कलत्र, दासी, दास, तोता, मैना, आदि चतुष्पद याने बैल, घोड़ा आदि उनके प्रमाण का कारण द्वारा याने गर्भाधान द्वारा अतिक्रम सो अतिचार मानना चाहिये।