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उपभोग-परिभोग व्रत का अतिचार
औदुम्बर, वृक्ष और कटुम्बर नामक पंचोदुम्बरी के फल नहीं खाना। खादिम में मधु आदि का नियम लेना तथा अन्य भी अल्प सावध ओदनादिक में अचित्त भोजी होना आदि परिमाण का नियम करना तथा चित्त की अत्यन्त गृद्धि कराने वाले, उन्माद जनक व निन्दा जनक वस्त्र, वाहन वा अलंकारों को काम में नहीं लेना वैसे ही शेष के लिये भी परिमाण कर लेना चाहिये।
कर्म से भी श्रावक ने प्रथम तो कुछ भी कर्म ही न करना बल्कि निरारंभी होकर रहना चाहिये कदाचित् उससे निर्वाह न हो तो उस समय निर्दयोचित विशेष पाप वाले. काम याने कि. कोतवाल जेलर आदि का काम, खरकर्म याने हल, मूसल, ऊखल, शस्त्र, लौह आदि के व्यापार छोड़कर जो अल्प सावध काम हो उन्हीं को करना चाहिये। __ यहां भी भोजन से पांच अतिचार वर्जनीय है यथा.सचित्ताहार, सचित्तप्रतिबद्धाहार, अपक्वौषधिभक्षण, दुष्पक्वौषधि भक्षण तथा तुच्छौषधि भक्षण।
जो सचित्त का त्यागी और अचित्त का भोगी हो, उसको ये अतिचार है ऐसे को अनाभोग तथा अतिक्रमादिक से कंदादिक सचित्त आहार करने से अतिचार लगता है।
तथा सचित्त याने आम की गुठली आदि में लगी पक्षछाल मुंह में डालकर पक्ष की अचित्त छाल मात्र खाता हूँ और सचित्त गुठली छोड़ दूगा ऐसी बुद्धि से सचित्त प्रतिबद्ध का आहार करना सो अतिचार है, क्योंकि-वहां व्रत की अपेक्षा कायम है।
व अपक्व याने बिना पकाई हुई औषधि याने गेहूँ आदि धान्य, उसका भक्षण अतिचार है । सारांश कि आटा किया हुआ होने से