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पन्द्रह कर्मादान का वर्णन
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अचेतन विचार कर सचित्त कण वाला बिना पकाया हुआ खाने से अतिचार है। और दुःपक्व याने कच्ची, पक्की पकाई हुई औषधि अर्थात् पोहुआ आदि खाना सो अतिचार है। व तुच्छ याने वैसी तृप्ति नहीं करने वाली मूगफली आदि हलकी
औषधियां खाना सो अतिचार है। ___ कोई कहें कि-जो यह सचेतन है, तो उसका खाना प्रथम अतिचार में आ जाता है, और अचित हो तो, फिर वह अतिचार ही कैसा ? उसको यह उत्तर है कि-यह बात सत्य है, किन्तु जो सावध से अत्यंत डर कर सचित्त का प्रत्याख्यान करे उसको यह अचेतन होते भी खाते हुए यथोचित तृप्ति न करने से उसका केवल लौल्यपन ही जाना जाता है, अतः इनको अचित्त करके भी न खाना चाहिये, यदि खावे तो परमार्थ से व्रत की विराधना होने के कारण अतिचार है।
इस प्रकार रात्रि भोजन व मांसादिक के व्रत में तथा वस्त्रादि परिभोग के व्रत में अनाभोग व अतिक्रमादिक अतिचार जान लेना चाहिये।
कर्म से पन्द्रह अतिचार वर्जनीय है, वे अंगार कर्म आदि हैं । ' अंगार कर्म वह है जहां कि अंगारे करके बेचने में आवे (१)
वन कर्म वह है जिसमें सारा वन खरीद, उसे काटकर व बेचकर उसके लाभ से आजीविका की जाय (२) . __शकट कर्म वह कि-जिसमें गांडियां बेच कर निर्वाह किया जावे । (३) . _भाटी कर्म वह कि-जिसमें अपनी गाड़ी से दूसरों का सामान उठावे अथवा बैल या गाड़ी भाड़े से दे (४) .