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________________ पन्द्रह कर्मादान का वर्णन ३३ अचेतन विचार कर सचित्त कण वाला बिना पकाया हुआ खाने से अतिचार है। और दुःपक्व याने कच्ची, पक्की पकाई हुई औषधि अर्थात् पोहुआ आदि खाना सो अतिचार है। व तुच्छ याने वैसी तृप्ति नहीं करने वाली मूगफली आदि हलकी औषधियां खाना सो अतिचार है। ___ कोई कहें कि-जो यह सचेतन है, तो उसका खाना प्रथम अतिचार में आ जाता है, और अचित हो तो, फिर वह अतिचार ही कैसा ? उसको यह उत्तर है कि-यह बात सत्य है, किन्तु जो सावध से अत्यंत डर कर सचित्त का प्रत्याख्यान करे उसको यह अचेतन होते भी खाते हुए यथोचित तृप्ति न करने से उसका केवल लौल्यपन ही जाना जाता है, अतः इनको अचित्त करके भी न खाना चाहिये, यदि खावे तो परमार्थ से व्रत की विराधना होने के कारण अतिचार है। इस प्रकार रात्रि भोजन व मांसादिक के व्रत में तथा वस्त्रादि परिभोग के व्रत में अनाभोग व अतिक्रमादिक अतिचार जान लेना चाहिये। कर्म से पन्द्रह अतिचार वर्जनीय है, वे अंगार कर्म आदि हैं । ' अंगार कर्म वह है जहां कि अंगारे करके बेचने में आवे (१) वन कर्म वह है जिसमें सारा वन खरीद, उसे काटकर व बेचकर उसके लाभ से आजीविका की जाय (२) . __शकट कर्म वह कि-जिसमें गांडियां बेच कर निर्वाह किया जावे । (३) . _भाटी कर्म वह कि-जिसमें अपनी गाड़ी से दूसरों का सामान उठावे अथवा बैल या गाड़ी भाड़े से दे (४) .
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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