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चौथा व्रत का अतिचार
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कराना हुआ, अतः भंग हुआ और यह तो मैं विवाह मात्र कराता हूँ-मैथुन कहां कराता हूँ ? ऐसे विचार से व्रत की अपेक्षा रहती है अतः अतिचार हुआ ।
काम में याने काम के उदय से किये जाते मैथुन में अथवा यह सूचक शब्द होने से काम भोग में, वहां शब्द और रूप को शास्त्र में काम मानते हैं और गंध, रस तथा स्पर्श को भोग मानते हैं उसमें तीव्राभिलाष याने अत्यंत अध्यवसाय यह भी तीनों को अतिचार संभव है यद्यपि अपनी स्त्री में तीव्रकामाभिलाष का स्पष्टतः प्रत्याख्यान नहीं किया, जिससे वह उनको खुला ही है, अतः उसके करने से उनको किसलिये अतिचार लगे ? तथापि वह अकरणीय है, क्योंकि जिनवचन का ज्ञाता श्रावक अथवा श्राविका अत्यंत पापभीरु होकर ब्रह्मचर्य रखना चाहते हैं, तथापि वेद का उदय न सह सकने के कारण वे नहीं रख सकते, तब उसकी शान्ति मात्र करने के हेतु स्वदार संतोष आदि अंगीकृत करते हैं, ऐसा होने से अतीव्र अभिलाषा से भी शांन्ति होती हो तो फिर तीव्राभिलाप परमार्थ से त्याग किया ही समझना चाहिये, अतः वह करते और व्रत की अपेक्षा भी कायम रहते भंगाभंगरूप से वह अतिचार माना जाता है ।
स्त्री को अनंगक्रीड़ादि तीन अतिचार की भावना की सो तो ठीक है, किन्तु उसको पांच अतिचार किस प्रकार संभव है ?
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इसका उत्तर यह है कि जब अपने पति को सपत्नी ने पारी के दिन परिगृहीत किया हो तब उसकी पारी का उल्लंघन करके उसको भोगने से प्रथम अतिचार लगता है, दूसरा अतिचार तो पर पुरुष की ओर अतिक्रमादिक की रीति से आकर्षित हो तब लगता है ।