Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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(LIV)
"समर्पण सूत्रों या निर्देश- सूत्रों के अध्ययन से भी यह तथ्य प्रमाणित होता है कि प्रस्तुत आगम में अनेक शताब्दियों की रचना का संकलन किया गया है। गणिपिटक की जानकारी के लिए नंदी सूत्र का निर्देश किया गया है। उसमें निर्युक्ति का उल्लेख है ।" यह उत्तरकालीन पाठ - रचना है । प्रस्तुत आगम में विभिन्न पाठों के रचनाकाल का निर्धारण करना बहुत आवश्यक कार्य है। इससे दार्शनिक विकास के कालक्रम को समझने में पर्याप्त सहायता मिल सकती है । " २
(६) आकार और वर्तमान आकार
"प्रस्तुत आगम का ग्रन्थमान अनुष्टुप् श्लोक के अनुपात से १६ हजार श्लोक प्रमाण माना जाता है। हमने अंगसुत्ताणि भाग २ में प्रकाशित प्रस्तुत आगम के संस्करण में अनेक स्थलों पर जाव शब्द की पूर्ति की है। उससे इसका ग्रन्थमान १९२८९ ९ /, श्लोक प्रमाण हो गया है । इसका सवा लाख प्रमाण वाला भी संस्करण मिलता है, जिसका उल्लेख पहले किया जा चुका है।
२
"जय धवला के अनुसार व्याख्याप्रज्ञप्ति अनुवाद की दुरूहता
"भगवई विआहपण्णत्ती का प्रथम भाग पाठक के सम्मुख प्रस्तुत हो रहा है । इसके सम्पूर्ण मूलपाठ का सम्पादन अंगसुत्ताणि भाग २ में हो चुका है। हमने जो सम्पादन-शैली स्वीकृत की है, उसमें पाठ-शोधन और अर्थ - बोध दोनों समवेत हैं । अर्थ-बोध के लिए शुद्ध पाठ अपेक्षित है और पाठ -शुद्धि के लिए अर्थ - बोध अनिवार्य है ।
"प्रस्तुत संस्करण अर्थ-बोध कराने वाला है। इसमें मूल पाठ के अतिरिक्त संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद और सूत्रों का हिन्दी भाष्य समवेत है । पाठ-सम्पादन का काम जटिल है। अर्थ
१. अंगसुत्ताणि, भाग २, भगवई, २५/९६, ९७ - कतिविहे णं भंते! गणिपिडए पण्णत्ते ? गोयमा ! दुवालसंगे गणिपिडए पण्णत्ते, तं जहा - आया दिट्टिवाओ। से किं ते आयारो ? आयारो णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर- विणय वेणइय सिक्खा
जाव
भासा-अभासा - चरण - करण-जाया माया
वित्तीओ आघविज्जंति, एवं अंगपरूवणा भाणियव्वा जहा नंदीए जाव । सुत्तत्थो खलु पढमो,
बीओ निज्जुत्तिमीसओ भणिओ ।
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तइओ य निरवसेसो,
एस विही होइ अणुओगे ||
२.
३.
४.
२,२८००० पद हैं । ४५
५.
भगवई (भाष्य), खण्ड १, भूमिका, पृ.
३६ ।
वही, खण्ड १, भूमिका, पृ. ३६ । समवायांग और नन्दी में जो रूप और आकार है उसके लिए द्रष्टव्य है-भगवई (भाष्य), खण्ड १, भूमिका, पृ. ३६ कसायपाहुड, प्रथम अधिकार, पृ. ९३,
९४ ।
भगवई (भाष्य), खण्ड १, भूमिका, पृ. ३६ ।