Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ३ : उ. १ : सू. २५-३३ २५. श्रमण भगवान् महावीर ने किसी समय मोका नगरी और नन्दन चैत्य से प्रतिनिष्क्रमण
किया, प्रतिनिष्क्रमण कर वे बाह्य जनपदों में विहार करने लगे। तामलि का ईशानेन्द्र-पद २६. उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था-नगर का वर्णन (द्रष्टव्य-भ. १/
४ का भाष्य) यावत् परिषद भगवान् की पर्युपासना करती है। २७. उस काल और उस समय में ईशान कल्प के ईशानावतंसक विमान में देवेन्द्र देवराज ईशान भगवान् महावीर की वन्दना के लिए आया (पूरा प्रकरण रायपसेणइयं के सूर्याभ देव की तरह ज्ञातव्य है।) वह गौतम आदि मुनिगण को दिव्य देव-ऋद्धि, दिव्य देव-द्युति, दिव्य देव-सामर्थ्य और बत्तीस प्रकार की दिव्य नाट्य-विधि दिखाकर जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में पुनः चला गया। २८. भन्ते! इस संबोधन से संबोधित कर भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करते हैं, वन्दन-नमस्कार कर वे इस प्रकार बोले-आश्चर्य है भन्ते! देवेन्द्र देवराज ईशान महान ऋद्धि वाला है यावत् महान् सामर्थ्य वाला है। भन्ते! ईशान की वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देव-द्युति और दिव्य देवानुभाग कहां गया? कहां प्रविष्ट हो गया?
गौतम! वह शरीर में गया, शरीर में प्रविष्ट हो गया। २९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है वह शरीर में गया, शरीर में प्रविष्ट हो गया? गौतम! जैसे कोई कूटागार (शिखर के आकार वाली)-शाला है। वह भीतर और बाहर दोनों ओर से लिपी हुई, गुप्त, गुप्तद्वार वाली, पवन-रहित और निवात गंभीर है। उस कूटागारशाला के पास एक महान् जनसमूह है। वह आते हुए एक विशाल अभ्र-बादल, वर्षा-बादल, महावात को देखता है। देख कर उस कूटागार शाला के भीतर प्रविष्ट हो कर ठहर जाता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-वह शरीर में गया, शरीर में प्रविष्ट हो गया। ३०. भन्ते! देवेन्द्र देवराज ईशान ने वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देव-द्युति और दिव्य देवानुभाग किस हेतु से उपलब्ध किया? किस हेतु से प्राप्त किया? और किस हेतु से अभिसमन्वागत (विपाकाभिमुख) किया। यह पूर्वभव में कौन था? इसका क्या नाम था? क्या गोत्र था? किस ग्राम, नगर यावत् सन्निवेश में रहता था? इसने क्या दान दिया? क्या आहार किया? क्या तप किया? क्या आचरण किया तथा किस तथारूप श्रमण या माहन के पास एक भी आर्य धार्मिक सुवचन सुना या अवधारण किया? जिससे देवेन्द्र देवराज ईशान ने यह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देव-द्युति और दिव्य देवानुभाग उपलब्ध किया है, प्राप्त किया है और
अभिसमन्वागत किया है? ३१. गौतम ! उस देश काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप द्वीप के भारतवर्ष में ताम्रलिप्ति
नामक नगरी थी-नगरी का वर्णन । ३२. उस ताम्रलिप्ति नगरी में मौर्यपुत्र तामलि नामक गृहपति रहता था, वह समृद्ध, तेजस्वी
यावत् अनेक लोगों द्वारा अपरिभूत था। ३३. किसी समय मध्यरात्रि में कुटुम्बजागरिका करते हुए उस मौर्यपुत्र तामलि नामक गृहपति के
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