Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ६ : उ. १-३ : सू. १५-२०
भगवती सूत्र वाले हैं, कुछ जीव अल्पवेदना ओर महानिर्जरा वाले हैं, कुछ जीव अल्पवेदना और
अल्पनिर्जरा वाले हैं। १६. यह किस अपेक्षा से?
गौतम! प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं। छठी-सातवीं नरक भूमियों के नैरयिक जीव महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं। शैलेशी-अवस्था को प्रतिपन्न अनगार अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं। अनुत्तरोपपातिक-देव अल्पवेदना और
अल्पनिर्जरा वाले हैं। १७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। संग्रहणी गाथा
महावेदना, कर्दम और खञ्जन से रंगा हुआ वस्त्र, अहरन, पूला, लोह का तवा, करण ओर महावेदना वाले जीव-प्रथम उद्देशक में ये विषय वर्णित हैं।
दूसरा उद्देशक
१८. राजगृह नाम का नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा–पण्णवणा (पद २८) का जो आहार-उद्देशक है, वह यहां अविकल रूप से ज्ञातव्य है। भन्ते! नैरयिक-जीव क्या सचित्त-आहार वाले हैं, अचित्त-आहार वाले हैं अथवा मिश्र-आहार वाले हैं? १९. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
तृतीय उद्देशक
संग्रहणी गाथा
बहकर्म, प्रयोग और स्वभाव से वस्त्र का उपचय-वस्त्र में पुद्गल के उपचय का सादित्व, कर्मस्थिति, स्त्री, संयत, सम्यग्-दृष्टि, संज्ञी, भव्य, दर्शनी, पर्याप्तक, भाषक, परीत, ज्ञानी, योगी, उपयोगी, आहारक, सूक्ष्म, चरम-बन्ध और अल्पबहुत्व।
तीसरे उद्देशक में ये विषय प्रतिपाद्य हैं। महा-कर्म वाले आदि के पुद्गल-बन्ध-पद २०. भन्ते! क्या महा-कर्म, महा-क्रिया, महा-आश्रव और महा-वेदना वाले पुरुष के सब
ओर से पुद्गलों का बन्ध होता है? सब ओर से पुद्गलों का चय होता है? सब ओर से पूद्गलों का उपचय होता है? सदा प्रतिक्षण पुद्गलों का बंध होता है? सदा प्रतिक्षण पुद्गलों का चय होता है? सदा प्रतिक्षण पुद्गलों का उपचय होता है? उस पुरुष की आत्मा (शरीर) सदा प्रतिक्षण बीभत्स, दुर्वर्ण, दुर्गन्ध, दूरस, दुःस्पर्श, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ, अकमनीय, अवांछनीय, अलोभनीय और जघन्य-रूप में न ऊर्ध्व-रूप में, दुःख-रूप में न सुख-रूप में बार-बार परिणत होती है?
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