Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ६ : उ. १ : सू. ६-१५ गौतम! उनके चारों प्रकार के करण प्रज्ञप्त हैं, जैसे–मन-करण, वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण। ७. इस प्रकार सब पंचेन्द्रिय-जीवों के चारों प्रकार के करण प्रज्ञप्त हैं। एकेन्द्रिय-जीवों के करण दो प्रकार के हैं काय-करण और कर्म-करण। विकलेन्द्रिय-जीवों के करण तीन प्रकार के हैं-वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण । ८. भन्ते! क्या नैरयिक-जीव करण से असात-वेदना का वेदन करते हैं अथवा अकरण से असात-वेदना का वेदन करते हैं? गौतम! नैरयिक-जीव करण से असात-वेदना का वेदन करते हैं, अकरण से असात-वेदना
का वेदन नहीं करते। ९. यह किस अपेक्षा से? गौतम! नैरयिक-जीवों के चार प्रकार के करण प्रज्ञप्त हैं, जैसे-मन-करण, वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण। इस चतुर्विध अशुभ-करण के आधार पर यह कहा जाता है-नैरयिक-जीव करण से असात-वेदना का वेदन करते हैं, अकरण से असात-वेदना का वेदन नहीं करते।
इस अपेक्षा से। १०. असुरकुमार-देव क्या करण से वेदना का वेदन करते हैं? अथवा अकरण से?
गौतम! वे करण से वेदना का वेदन करते हैं, अकरण से वेदना का वेदन नहीं करते। ११. यह किस अपेक्षा से?
गौतम! असुरकुमार-देवों के करण चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-मन-करण, वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण। इस शुभ-करण के आधार पर कहा जाता है-असुरकुमार-देव
करण से सात-वेदना का वेदन करते हैं, अकरण से सात-वेदना का वेदन नहीं करते। १२. इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार-देवों की वक्तव्यता। १३. पृथ्वीकायिक-जीवों की पृच्छा इसी प्रकार है, केवल इतना अन्तर है-इस शुभाशुभ-करण
आधार पर कहा जाता है-पृथ्वीकायिक-जीव करण से विमात्र-कभी सात- कभी असात-वेदना का वेदन करते हैं, अकरण से विमात्र वेदना का वेदन नहीं करते। १४. औदारिक शरीर वाले सभी जीव शुभ- और अशुभ-करण से विमात्र वेदना का वेदन करते
देव शुभ-करण से सात-वेदना का वेदन करते हैं। महावेदना-महानिर्जरा-चतुर्भंग-पद १५. भन्ते! क्या जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं? महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं? अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं? अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं। गौतम! कुछ जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, कुछ जीव महावेदना और अल्पनिर्जरा
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