Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 534
________________ पष्ठ सूत्र पंक्ति पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध शतक ८ २६२६६२१-२४," की (-प्रयोग-परिणत पुद्गलों) की २ २६० सं. गा. | आराधना। | राजगृह नगर में भगवान का | समवसरण यावत् गौतम ने गौतम! पांच आराधना ।।१॥ राजगृह (भ. १/४.१०) यावत् (गौतम ने) गौतम! (प्रयोग-परिणत पुद्गल) पांच गौतम! (एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) पांच गौतम! (पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) दो ये दो भेद संमूर्छिम-जलचर-तिर्यंच -खेचर समूचिम-मनुष्य-पंचेन्द्रिय गर्भावक्रान्तिक मनुष्य-पंचेन्द्रिय और अपर्याप्तक-गर्भावक्रान्तिका असुरकुमार-भवनवासी दो इसी प्रकार यावत् | गौतम! दो ५ |दन दो भेदों द्वीन्द्रियगौतम! पंचेन्द्रिययावत् के पर्याप्तक-अपर्याप्तक की | वक्तव्यता। +२ | पर्याप्तक और अपर्याप्तक -कल्पातीतगा विजय ४ अपराजिता गौतम! (पंचेन्द्रियभी (भ. २/७७) यावत् अशुद्ध शुद्ध ६ जो अरूपीकाय जो अरूपि-काय को . . . जैसे- धर्मास्तिकाय, जैसे-धर्मास्तिकाय, रूपीकाय रूपि-काय महावीर यावत् महावीर (भ. १/७) यावत् | हुए यावत् हुए (भ. १/८) यावत् |बुला कर बुलाकर | वक्तव्यता यावत् | (वक्तव्यता) (म. ७/२१३) यावत् | की वक्तव्यता कैसे संगत है? (की वक्तव्यता) कैसे (संगत है)? ७ | हैं यावत् है (म. २/११०) यावत् ८ | दूर यावत् दूर (म. ३/१३) यावत् वक्तव्यता। यावत् वक्तव्यता (म. ७/२१३) यावत् अजीवकाय अजीव-काय अरूपीकाय जीवकाय अरूपि-काय जीव-काय अरूपीकाय अरूपि-काय | पुद्गलास्तिकाय, को मैं रूपीकाय | पुद्गलास्तिकाय को मैं रूपि-काय २ अरूपीकाय अजीवकाय अरूपि-काय अजीव-काय | रूपीकाय रूपि-काय | अजीवकाय अजीव-काय रूपीकाय अजीवकाय | रूपि-काय अजीव-काय ३ अरूपीकाय अरूपि-काय स्कन्दक (भ. २/५०-६३ की) स्कन्दक की | किया यावत् किया (म. २/५०-६३) यावत् समय वहां समवसृत | समय (म. १/७) यावत् समवसृत परिषद आई, धर्म सुना और वापिस परिषद् (भ. १/८) यावत् वापिस १ आ कर ३ | विषमिश्रित विष-मिश्रित ५ | दुर्गन्ध यावत् दुर्गन्ध (भ. ६/२०) यावत् प्राणातिपात यावत् प्राणातिपात (म. १/३८४) यावत् ३ औषधिमिश्रित | औषधि-मिश्रित ४ | सुवर्ण यावत् | सुवर्ण (भ. ६/२२) यावत् ६ | विरमण यावत् विरमण (भ. १/३८५) यावत् - विवेक यावत् विवेक (ठा. १/११५-१२५) यावत् (संमूर्छिम-जलचर-तिर्यच) (-खेचर) (संमूर्छिम-मनुष्य-पंचेन्द्रिय) (गर्भावक्रान्तिक-मनुष्य-पंचेन्द्रिय) भी, अपर्याप्तक-गर्भावकान्तिक भी। (असुरकुमार-भवनवासि-देव) दो | इस प्रकार (पूर्ति–पण्णवणा, २/३० -४०) यावत् (दो प्रकार के प्रज्ञप्त है-) पर्याप्तक और अपर्याप्तका (पर्याप्तक और अपर्याप्तक) -कल्पातीतग, विजय अपराजित (इन सबके दो दो भेद इसी प्रकार वक्तव्य है। -कल्पातीतग-देव (सर्वार्थसिद्ध-कल्पातीतग-देव) (-प्रयोग है। शेष पूर्ववत् (जो |-कल्पातीतग | सर्वार्थसिद्ध-कल्पातीतग |-प्रयोग है-शेष जो (भवनवासी है-बादर आकर . जलचर (जलचरस्थलचर (स्थलचरचतुष्पद (चतुष्पद-परिसर्प |-परिसर्प भी खेचर खेचर भी | मनुष्य (मनुष्यदेवप्रकार यावत् प्रकार (म. २/११६) यावत् भवनवासी३ -परिणत -परिणत (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) -पिशाच यावत् |-पिशाच (ठा. ८/११६) यावत् २ |-चन्द्रविमान- ज्योतिष्क यावत् -चन्द्रविमान-ज्योतिष्क (ठा. ५/५२) यावत् यावत् यावत् (अणुओगदाराई सू. २८७) -वैमानिक यावत् |-वैमानिक (ठा. ६/३८) यावत् ३ | विजय अनुत्तरोपपातिक- विजय-अनुत्तरीपपातिकयावत् (म. ६/१२१) यावत् २ गौतम! दो गौतम! सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय- | |-प्रयोग-परिणत पुद्गल दो ४ यावत् वनस्पति-कायिक (वक्तव्य है), इस प्रकार यावत् वन स्पतिकायिक५ बादर। सूक्ष्म बादर, (सूक्ष्म प्रकार) वक्तव्य हैद्वीन्द्रिय (द्वीन्द्रिय ३, ४ | इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय इस प्रकार श्रीन्द्रिय भी, इस प्रकार चतुरिन्द्रिय भी (वक्तव्य हैं। | २ | रत्नप्रभा (रत्नप्रभा २ -रत्नप्रभा (-रत्नप्रमा | अधःसप्तमी-पृथ्वी अधःसप्तमी (-पृथ्वी५ है कि बादर हैं। इस प्रकार जैसे २ | गर्भावक्रान्तिक-मनुष्य गर्भावक्रान्तिक (-मनुष्य की वक्तव्यता। भी (वक्तव्य है) है कि पांच पर्याप्त-असुरकुमार पर्याप्त (-असुरकुमार ४ | ताराविमान तारा-विमान | २ | पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पृथ्वीकायिक (-एकेन्द्रिय-प्रयोग -परिणत) | ४ | पर्याप्त पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग- पर्याप्त (-पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय|-परिणत |-प्रयोग-परिणत) |२,३ |-प्रयोग (-प्रयोग३५ | २ | प्रकार पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक- प्रकार जो पर्याप्त-सूक्ष्म (-पृथ्वीकायिक-पृथ्वीकायिक (-पृथ्वीकायिक ५-६ वक्तव्यता। (वक्तव्य है)। इस प्रकार इसी प्रकार ६ बादर-पर्याप्त-पृथ्वीकायिक | (बादर-) पर्याप्तक (-पृथ्वीकायिक -परिणत -परिणत पुद्गल) भी की वक्तव्यता। इसी प्रकार (वक्तव्य है) इस प्रकार है, जो | अग्निकाय का प्रज्वलित अग्निकाय को प्रज्वलित Hand १ | अनगार, श्रमण अनगार यावत् अनगार श्रमण अनगार (म. १/४३३) यावत् (२२)

Loading...

Page Navigation
1 ... 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546