Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 539
________________ शुद्ध |पृष्ठ सूत्र पंक्ति ज अशुद्ध पृष्ठ सूत्र पक्ति ३२३ | ४२८ ३ | बाल तपः कर्म, बाल-तपःकर्म, ३२४ ४६ नी ४३३ | (कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध) कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध -कर्म-बंध की वक्तव्यता। |-बंध) की (वक्तव्यता) अंतर की वक्तव्यता ३३५-३ ३ | बंधक वक्तव्यता। २ | अबंधक है भंते! है अबंधक १३ | सर्व बंधक १ | वैक्रिय-शरीर ४ की वक्तव्यता अंतर) की (वक्तव्यता)। है? बंधक उनसे (वक्तव्यता) अबंधक उनसे है, मंते! है, अबंधक सर्व-बंधक | वैक्रिय-शरीर की भी वक्तव्यता | है, भंते! तैजस- और कर्म-शरीर है (म. ८/४३६) यावत् में भी वक्तव्य है की भी (वक्तव्यता)। है (म. ८/४३६), वही में भी वक्तव्य है वक्तव्यता उक्त है वैसेवक्तव्यता वक्तव्य है यावत् एक एक जीव एक-एक जीव हैं? जैसे | है, जैसे " | नैरयिकों के कर्म-प्रकृतियां (नैरयिकों के कर्म-प्रकृतियां) | इस प्रकार वैमानिक पर्यंत सब इस प्रकार सब हैं यावत् वैमानिकों को | वैमानिक-पर्यंत वैमानिको पर्यंत की पृच्छा। की-पृच्छा। ४ |-कर्म अनंत -कर्म के अनंत जीव की | जीव (भ. ८/४८२) की ३ वक्तव्यता (वक्तव्यता) के वैमानिक की (वक्तव्यता) यावत् वैमानिक ६ वक्तव्यता। वक्तव्यता। शेष पूर्ववत् (वक्तव्य है)। होता। होता; है, उसके है उसके दर्शनावरणीय दर्शनावरणीय भी वेदनीय की वक्तव्यता उसी प्रकार | वेिदनीय उक्त है) उसी प्रकार नाम नाम | के साथ भी हैं इसी है। इसी ' " साथ नाम कर्म साथ भी नाम-कर्म ४६७/" |है स्यात् है, स्यात् ६७ 69" होता। होता; ५००१ है। कहलाता है गौतम! | (कहलाता है), गौतम! ३ | तैजस और ४ कर्म शरीर है यावत् . में वक्तव्य है, ३ | की वक्तव्यता। ४ | है, वही ' में वक्तव्य है, ३ वक्तव्यता वैसे ४ | वक्तव्यता, यावत्२ है? ३-६ | उससे | १ | नगर यावत् गौतम ने शुद्ध ४ | ३ | है। धातकीखंड है।) धातकीखंड " | ४ |जीवाभिगम (३/८३८ गाथा ३१) जीवाजीवाभिगम (३/८०६, ८२०, | ८३०, ८३४, ८३७, ८३८ गाथा ३१) " | ५ | है, यावत् है यावत ' |५-६ /छासठ हजार नो सौ पचहत्तर (छासठ हजार नो सौ पचहत्तर) ५ | २ | में यावत् में (जीवाजीवाभिगम, ३/८५५.. ६५२) यावत् ७ वक्तव्यता (वक्तव्यता) ७, ६ , भगवान राजगृह नगर में आए राजगृह में (म. १/४-१०) यावत् | यावत् गौतम इस इस ८ प्रकार जीवाभिगम प्रकार जीवाजीवाभिगम -३०| सर्वत्र | भंते! क्या कोई पुरुष/मंते! कोई भते! (क्या कोई पुरुष) पुरुष | दर्शनावरणीय कर्म दर्शनावरणीय (दर्शन-मोहनीय)-कर्म केवल- आमिनिबोधिक केवल-आभिनिबोधिक उपपत्र उत्पन्न उपत्र का उपवास के तप की साधना के उपवास)-रूप तपःकर्म के साथ | करता है, जो ७, ८ | अंगुल के असंख्यातवें भाग अंगुल-के-असंख्यातवें-भाग | अश्रुत्वा-अवधिज्ञानी | (अश्रुत्वा अवधिज्ञानी) २ | है। अनन्त हे, अनन्त १ | अश्रुत्वा-केवलज्ञानी (अश्रुत्वा केवलज्ञानी) मंते! अश्रुत्वा केवलज्ञानी | भते! वे (अश्रुत्वा केवलज्ञानी) (क्या कोई पुरुष) ६ यावत् (भ. ६/११-३२) यावत् की साधना के द्वारा -रूप तपःकर्म के द्वारा | अंगुल के असंख्यातवें भाग अंगुल-के-असंख्यातवें-भाग श्रुत्वा-अवधि-ज्ञानी (श्रुत्वा अवधिज्ञानी) साकार उपयोग | साकार-उपयोग अनाकार उपयोग अनाकार-उपयोग कषाय रहित कषाय-रहित | श्रुत्वा-अवधिज्ञानी (श्रुत्वा अवधिज्ञानी) |गति-नाम गति नाम श्रुत्वा केवलज्ञानी (श्रुत्वा केवलज्ञानी) ३ वह केवली-प्रज्ञप्त-धर्म का (वह केवलि-प्रज्ञप्त-धर्म का) | है, यावत् है यावत् हैं यावत् | जैसे असोच्चा की वक्तव्यता यावत् असोच्चा की भांति (वक्ततव्यता) (भ. ६/५०) यावत् , भंते! श्रुत्वा-केवलज्ञानी मते! वे (श्रुत्वा केवलज्ञानी) | केवली यावत् केवली (म. ६/५१) यावत् नैरयिक नैरयिकों | नैरयिक प्रवेशनक नैरयिक-प्रवेशनक २ | है? यावत् है यावत् इसी प्रकार। इस प्रकार यावत् उनसे नगर में (भ. १/४-१०) यावत् (गौतम ने) हैं, श्रुतवान हैं। गौतम! गौतम! | २ | नैरयिक से लेकर (नैरयिक से लेकर) वैमानिक तक ५०१ २ ] की भांति वक्तव्य हैं, शतक वैमानिक (तक की भांति) वक्तव्य है, ४५० | १२ | है श्रुतवान ४५०१५, १६ है। गौतम के कितने प्रकार प्रज्ञप्त है? २ | के तीन प्रकार प्रज्ञप्त है, १,२] है क्या ३ | है उसके ४५७/ १,२] है क्या ४ है उसके कल्प-अथवा वर्ण- परिणाम ३३०/ ४७२/ २ | वक्तव्य है | ३ | द्रव्य देश चैत्य-वर्णना २ | किया, यावत् जम्बूहीवपण्णती भगवान राजगृह नगर में आए यावत् गौतम इस | प्रकार जीवाभिगम | वक्तव्यता यावत् जम्बूद्वीप द्वीप | कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है? | तीन प्रकार की प्रज्ञप्त है, है, क्या है, उसके है, क्या है, उसके कल्प- अथवा वर्ण-परिणाम वक्तव्य है द्रव्य-देश ? यावत् पुरुष ।।१।। चैत्य-वर्णना किया (म. १/८-१०) यावत् जम्बूहीवपण्णत्ती राजगृह में (भ. १/४-१०) यावत् । इस प्रकार जीवाजीवाभिगम (वक्तव्यता) यावत् जम्बूद्वीप द्वीप है।।१।। | प्रकार जीवाजीवाभिगम (वक्तव्यता) यावत् (लवण समुद्र में)| तारागण (की ४६८/ प्रकार जीवाभिगम वक्तव्यता यावत् लवण समुद्र में तारागण की ( २७)

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