Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पृष्ठ सूत्र पंक्ति
३८७ २६०
२६१
३८८ स. गा.
१.
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२
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२८८
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३८८
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३८६
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२३
२४
३६२ २५,२८ १
२५ २
वाला ।
कंद यावत्
३
अशुद्ध
अन्तद्वीप
राजगृह नगर यावत् गौतम इस
गौतम! जीव
पूर्व दिशा
जैसे - ऐन्द्री
परमाणु- पुद्गल
याम्या
की भी ( वक्तव्यता ) जैसे- औदारिक का प्रज्ञप्त है? (पण्णवणा, पद २१) राजगृह (म. १/४-१०) यावत् इस देखता है (भ. १०/११) है? – पृच्छा
कितने प्रकार की प्राप्त हैं? तीन प्रकार की प्रज्ञप्त है, का भी वेदन
४
३६१ १६ २१ सर्वत्र होती। जो
में (उक्त है) यावत् होती, जो करूंगा, जो
२०
३
करूंगा जो
२३
9 राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस राजगृह (भ. १/४ - १०) यावत् इस
५.
६
असुरकुमार भी है, शेष (क्या) भन्ते ! ( क्या)
,
१
२
१७ ३ ( सर्वत्र) का वेदन भी में यावत्
शतक १०
कोण ) सौम्य (उत्तर)
का कोण
वक्तव्यता
परमाणु- पुद्गल याम्या की
की वक्तव्यता
जैसे- औदारिक
के प्रज्ञप्त हैं?
पद ( पण्णवणा, २१)
राजगृह नगर यावत् गौतम इस देखता है
है? पृच्छा
के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं? के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं,
असुरकुमार
है शेष
वाला होता है।
कंद, इस प्रकार (म. ८ / २१६) यावत्
ऐन्द्री दिशा
है, वे
है? पृच्छा
है?-पृच्छा
द्वीन्द्रिय के देश हैं अथवा एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय के देश हैं, अथवा एकेन्द्रिय
के देश हैं और द्वीन्द्रिय के देश हैं, अथवा एकेन्द्रिय
( वक्तव्यता)
क्या भंते!
है। वह सम ऋद्धि वाले
प्रमत्त देव
वह सम ऋद्धिवाले देव को
शुरू
अन्तद्वीप ||9||
राजगृह (भ. १/४ - १०) यावत् इस गौतम! ( वह) जीव
पूर्व
जैसे
ऐन्द्री
},
कोण), सौम्य (उत्तर),
का कोण ),
है || १ ||
( ऐन्द्री दिशा ) हैं, वे
है, ( वह सम ऋद्धि वाले)
प्रमत्त (देव)
( वह सम ऋद्धि वाले देव को
पृष्ठ सूत्र पंक्ति
३६२
३६२ २७ ३ २८ ३ २६ ३६३ ३० ३ गौतम! ३६३ ३१,३२, ३४/१
भंते!
के तीन
वक्तव्यता । सम- ऋद्धि
भंते! क्या ऋद्धि वैमानिक
३६३
≈≈ 2 ***** *...........
३६३ ३१
३६३ ३१
३६३
३३
३६३
३५
१
३६३ ३५ १
३६३
३६३
३६३
३६३
३६३ ३६
३६४
३६३ ३७
३६४
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३६८
३६६
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३६
३६७
३६
३६७
३६
२८
३६४ ३८ ४
३६ १
४०
४०
४०
४३
४४
४५
४७
BE
५३
५४
५६
५६
५६
५८
५६
३
६०
३
४० शीर्षक प्रज्ञापनी भाषा पद
६०
६२
४, ५
→
६४
६४
४
५
9
३
क्या
३
है। सम ऋद्धि ३-४ पूर्ववत् वक्तव्यता ( १० / २५-२७) उसी प्रकार (म. १०/२५-२७) ( वक्तव्यता ) । देवी की भी
देवी की
पूर्ववत् वक्तव्यता ( १० / २८-३० ) । उसी प्रकार ( म. १० / २८-३०)
(वक्तव्यता) ।
--
१,३
३
२
५
१
५
३
५
३
५
५
५
४
२
२
अशुद्ध
गौतम !
हां,
है। विमोहित
भंते! गौतम ! इसी प्रकार
४
म
ठहरूंगा, सोऊंगा, खड़ा रहूंगा, बैठूंगा, लेदूंगा
गौतम !
महावीर आए
अनगार यावत्
रह रहा था।
(इच्छा) यावत्
सम्पन्न याव
असुर- कुमारराज
वक्तव्यता यावत्
यावत्
की वक्तव्यता । इसी
प्रकार यावत्
की वक्तव्यता।
वक्तव्यता यावत्
आलोचना प्रतिक्रमण
की भांति वक्तव्यता।
में यावत्
धरण की
२ (दोनों वक्तव्यता
बार),
चैत्य यावत् (सूत्र २७२) की
गौतम ! वह
हां, (वह)
है, विमोहित
( २६ )
गौतम! (वह)
भंते! (क्या)
के भी तीन
शुद्ध
( वक्तव्यता) ।
भंते! (क्या) सम ऋद्धि
(भंते! क्या) ऋद्धि वाले वैमानिक
(क्या)
है। इस प्रकार सम ऋद्धि
(भंते! क्या)
गौतम ! (वह)
उसी प्रकार
प्रज्ञापनी भाषा पद
हम
ठहरेंगे, सोयेंगे, खड़े रहेंगे, बैठेंगे, लेटेंगे
गौतम! हम
महावीर समवसृत हुए (म. १/७, ८) अनगार (म. १/६) यावत्
रहता था।
(इच्छा) (भ. १/१०) यावत्
सम्पन्न (म. २/६४) यावत् असुरकुमारराज
वक्तव्यता (म. १०/४७-४८) यावत्
(म. १०/ ४६-५१) यावत्
की भी ( वक्तव्यता)। इस
प्रकार (म. ३/२७४) यावत् की ( वक्तव्यता) । (वक्तव्यता) (भ. १०/४७) यावत् आलोचना-प्रतिक्रमण की भांति (वक्तव्यता)।
में (भ. १० / ५७-५६) यावत् धरण ( म. १० / ५६) की (वक्तव्यता)
चैत्य (भ. १/४-८) यावत् (भ. ८ / २७२ की भांति
पृष्ठ सूत्र पंक्ति
३६७ ६४ ५ ३६७- सर्वत्र सर्वत्र
४०१
३६७
३६७
४०१
३६७
४०१
३६७
३६८
३६८
६५ २
जैसे- काली,
६५ ३
51
सर्वत्र सर्वत्र क्या
१
६६ एक एक सर्वत्र सर्वत्र हां, है।
६ ६ ३
४
३६७ की वक्तव्यता ३६७ ६७-६४ सर्वत्र सुधर्मा सभा में
३६७ ६८
३६८
६६
७०
७०
३६८
४०१
३६७, सर्वत्र सर्वत्र विहरण करने
२८८
३६७
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६८
७१
555555
७२
२
३
४
१
४
४
२
३६८ ७२ ५
३६८ ७२-७६ ५
३६८ ७३
३
७३ ४ ७४ ३
(इच्छा) एक आर्य!
७४ ४
३६६ ७५
३६६ ७५.८१ सर्वत्र ३६६ - सर्वत्र सर्वत्र
४०१
३६७ ७७
अशुद्ध
३-४ समर्थ है ?
१
- परिवार विक्रिया करने में समर्थ है।
२
में यावत्
चत्य
स्तम
सभा सुधर्मा में
देवी परिवार
प्रज्ञप्त है। यह है अतःपुर की
वक्तव्यता।
देवी - परिवार विक्रिया
करने में समर्थ है।
अवशेष (रायपसेणइय ७) पूर्ववत् यावत्
पूर्ववत् इतना
में शेष सोम की भाँति वक्तव्यता। की वक्तव्यता,
है। शेष चमर की भांति
वक्तव्यता है, परिवार की मोक उद्देशक ( भगवई, ३/४ ) है। शेष सोम चमर वक्तव्यता । उनमें प्रत्येक
देवी परिवार
पूर्व अपर सहित
-परिवार विक्रिया
(इच्छा), एक आर्यो!
जैसे- काली
81
( क्या )
एक-एक (हां, है1)
शुद्ध
(- परिवार की विक्रिया करने में समर्थ है ) ।
( की वक्तव्यता)
सुधर्मा सभा में,
रहने
में (म. १०/६७) यावत्
चैत्य-
स्तंभ
सुधर्मा सभा में,
देवी का परिवार
प्रज्ञप्त है।
देवी ( परिवार की विक्रिया करने में समर्थ है।) यह है अंतःपुर (की वक्तव्यता)।
समर्थ है? अवशेष
(रायपसेणियं सू. ७)
पूर्ववत् (भ.१०/६७-६६) यावत् पूर्ववत् (भ.१०/७०-७२), इतना में, शेष सोम की भांति (वक्तव्यता)। की भी (वक्तव्यता),
है, शेष चमर (म. १० / ६५-६७)
की भांति (वक्तव्यता), परिवार मोक उद्देशक ( म. ३/१२)
है, शेष चमर-सोम (वक्तव्यता) ।
उनमें से प्रत्येक
देवी-परिवार
पूर्व अपर सहित
-परिवार की विक्रिया