Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पंक्ति
अशुद्ध
पृष्ठ | सूत्रापंक्ति
हैं? यावत् है? पृच्छा
है यावत् है? -पृच्छा
अशुद्ध परत पृथ्वी-कायिक मनुष्य असुरकुमार
परतः पृथ्वीकायिक मनुष्य (वक्तव्य है) असुरकुमारों है)। गांगेया
| सूत्र पंक्ति
अशुद्ध | हाथ पैर १ किया अल्पभार
किया यावत्
वैसे ही दस नैरयिकों के वक्तव्य है (वैसे ही दस नैरयिकों के वक्तव्य है। किससे
किनसे
हैं?
है?
हाथ-पैर किया (म. ३/३३) यावत् अल्पमार किया (म. ३/३३) यावत् गई। ने (म. ६/१७५) यावत् पर (म. ६/१८५) यावत् किया (भ. ६/२०१) यावत् क्षत्रियकुमार ऋद्धि (भ. ६/१८२) यावत् पा (ओवाइयं, सू. १५०) यावत् प्रयत्न करना। जात! संयम
___ गांगेय!
है यावत् ६ | यावत् यथापरिगृहीत
सुकुमाल हाथ वाली यावत् स्वामी आए। आ कर शोभित यावत् स्नान यावत् कुब्जा, यावत्
कहा-गौतम ११ बोले। प्रवचन के पश्चात्
| प्रज्ञप्त है।
प्रज्ञप्त है | किससे
किनसे . | "किससे
किनसे सर्वत्र भवनवासी
भवनवासियों वाणमंतर
वाणमंतरों ज्योतिष्क
ज्योतिष्कों . वैमानिक
वैमानिकों है?
है? (अथवा) वानमंतरों (अथवा) वाणमंतर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक में ज्योतिष्कों (अथवा) वैमानिकों में प्रवेश
(प्रवेश
है (म. २/६४) यावत् (म. २/६४) यावत् यथापरिगृहीत सुकुमार-हाथ वाली (ओवाइयं, सू. १५) यावत् स्वामी समवसृत आए।
चेष्टा करना। जात! संयम
ने यावत् २ | पर यावत्
किया यावत् १ क्षत्रिय कुमार
ऋद्धि यावत्
पा यावत् ४-५ प्रयत्न करना।
जात! संयम ५-६ चेष्टा करना।
जात! संयम ६-७ पराक्रम करना।
जात! इस अर्थ २ | किया यावत्
सामायिक, आचारांग आदि वनखण्ड तक। उस
| विचरण, ग्रामानुग्राम ४ रह रहा , विहरण करते हुए
| +२
शोभित (ओवाइयं, सू. १६) यावत् स्नान (भ. ३/३३) यावत् कुब्जा (भ. ६/१४४) यावत् कहा-गौतम बोले-धर्म का निरुपण करते है (ओवादय, सू. ७१-७६) यावत् यह इष्टपेतीसित है-जैसा आप कह
पराक्रम करना। जात! इस अर्थ
२ है, वाणमंतर, सर्वत्र | हैं। अथवा ४ | देव-प्रवेशनक
हैं अथवा वानमंतरों अथवा है अथवा देव-प्रवेशनक भी किनसे
किया (म. २/५३-५७) यावत् | सामायिक आदि
वनखण्ड। उस | विचरण एवं ग्रामानुग्राम
| किससे
रहता
| है? यावत् | हैं, यावत्
हैं? यावत् | अनादि अनंत
| संक्षिप्त ऊपर १३ | है-यावत्
हैं यावत् हैं यावत् हैं यावत् अनादि, अनंत संक्षिप्त, ऊपर है यावत् है। (इस प्रकार)
६,७ | यह इष्टप्रतीप्सित है
जैसा आप कह | मात्र-मूलक ६ है यावत् | नग्नभाव यावत् है यावत् दीप्तिमान यावत्
आदिकर्ता यावत् |ओवाइयं की है, यावत् क्षत्रिय कुमार है यावत् भोज यावत् क्षत्रिय-कुण्डग्राम | सत्रिय-कुमार ११ | बोले। प्रवचन के पश्चात्
|" | राजगृह नगर यावत् गौतम इस ४६-११ सर्वत्र | नो-पुरुष | २४८१,३ | नो-अश्व
५ व्याघ्र यावत् २०६५ सर्वत्र | नो-ऋषि
है-ऋषि | ५ नो-चित्रलों | ३ | तैजसकायिक, वायुकायिक,
३ की वक्तव्यता
विहरण एवं रहते राजगृह (भ. १/४-१०) यावत इस नोपुरुष नोअश्व व्याघ्र (पण्णवणा, १/६६) यावत् | नोऋषि है-वह) ऋषि नोचित्रलों | तैजसकायिक का, वायुकायिक का, का (आन यावत् निःश्वास लेते है।
इसी प्रकार १६ | आगम " जानता। इसी प्रकार
(आगम
मात्रा-वृत्तिक है (भ. ३/३३) यावत् | नग्नभाव (म. १/४३३) यावत् है (म. २/५४) यावत् दीप्तिमान (भ. २/६४) यावत् आदिकर्ता (ओवाइय, सू. १६) यावत् ओवाइयं (सू. ५२, ६६) की है यावत् क्षत्रियकुमार है (भ. ६/१५८) यावत् मोज (ओवाइयं, सू. ५२) यावत् क्षत्रियकुण्डग्राम क्षत्रियकुमार बोले-धर्म का निरुपण किया (ओवाइयं, सू. ७१-७८) यावत् है।-जैसे आप कांत (म. ९/१५६) यावत् है (म. ६/१५६) यावत् सिद्धि-गमन हैं, इसलिए हिरण्य (भ. ६/१७५) यावत् व्यवसाय सम्पन्न झाड़,-बुहार (वक्तव्यता)
जानता)-पूर्ववत् है? (अथवा)
१
| तैजसकायिक, वायुकायिक भंते! यावत्
असुरकुमारों
(असुरकुमारों
३ ३
पूर्ववत् वक्तव्यता। की वक्तव्यता।
है? पृच्छा।
- है-असुरकुमार २ | परतः ७ | स्ततिनकुमार।
- स्तनित्कुमार RE- सर्वत्र | पृथ्वीकायिक में
उत्पन्न
है (-असुरकुमार परतः) स्तनितकुमार (वक्तव्य है)। स्तनितकुमार (वक्तव्य है) | पृथ्वीकायिकों में उपपत्र
| है। जैसे आप कांत यावत् है यावत् | सिद्धि -गमन है इसलिए हिरण्य यावत् व्यवसाय- सम्पन्न झाड़, बुहार वक्तव्यता
तैजसकायिक का, वायुकायिक का इस प्रकार यावत् भंते! क्या है? उसी प्रकार (वक्तव्य है)। इसी प्रकार (वक्तव्य है। का (आन यावत् निःश्वास लेता हुआ) स्यात् तीन यावत् स्यात् पांच क्रिया वाला होता है। के साथ भी सर्व (विकल्प) के साथ भी, इस प्रकार वायुकायिक के साथ भी (सर्व विकल्प वक्तव्य है। आन (यावत् है?)-पृच्छा।
| ४ | के सर्व विकल्प |४-५ | और वायुकायिक की वक्तव्यता
२६० १ आन यावत्
| २ | है? पृच्छा।
(२८)