Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 544
________________ पृष्ठ सूत्र पंक्ति ४ ७ बढ़ते बढ़ते होते होते | २१ । बढ़ते-बढ़ते होते-होते है जैसे -१३४) में (उक्त है वैसे वक्तव्य है)। (पण्णवणा, पद ४) निरवशेष वक्तव्य |-१३४) की भांति वक्तव्य है। | (पण्णवणा-पद ४) वक्तव्य है। | सूत्र पंक्ति अशुद्ध २ याग कार्य कराए। ३ | दिलवाया। ५ | पूर्ववत् यावत् ८ | कुल संतान वक्तव्यता व्याघात रहित ४ (कलादि ग्रहण) | दृढपतिज्ञ कर यावत् ३ श्वेत वेदिका-संयुक्त३,५ की भांति वक्तव्यता | सुकुमाल हाथ | विहरण कर रही ७,८ | यावत् | मृट्ट सुकुमाल हाथ२२ | दूसरी तीसरी सुकुमार-हाथरहती (भ. ११/१३३) यावत् याग-कार्य कराए, दान दिलवाया, पूर्ववत् (भ. ११/६३) यावत् | कुल-संतान (वक्तव्यता) व्याघात-रहित (कलादि-ग्रहण) दृढप्रतिज्ञ (ओवाइयं, सू.१४६-१४८) कर (राय. सू. ८१०) यावत् श्वेत-वेदिका-संयुक्त-वर्णक जैसा में (उक्त है वैसा वक्तव्य है) चा, वर्णक जैसा | (सूत्र ३२) में (उक्त है वैसा and aur • & सुकुमार-हाथदूसरी बार भी, तीसरी है। जेसा आप पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध शुद्ध |४३७ / १७८| ३ | महावीर यावत् महावीर (ओवाइय, सू. ५२) यावत् | को यावत् को (भ. २/६७) यावत् । २२ | उपदेश दिया निरूपण किया (ओवाइय, सू. ७१ -७७) ५ अधिक यावत् अषिक (भ. ११/१७६) यावत् महाविदेह वास में महाविदेह क्षेत्र में २ करने लगे कर रहे है। | यजुर्वेद, यावत् यजुर्वेद (भ. २/२४) यावत् ब्राह्मण और परिव्राजक ब्राह्मण- और परिव्राजकके तप की साधना के द्वारा दोनों -रूप तपः कर्म के साथ दोनों परिव्राजक का निरंतर बेले-बेले परिव्राजक को निरंतर बेले-बेले-रूपा तपः कर्म के द्वारा तपः-कर्म के साथ ३ | मृदुमार्दव संपन्नता, मृदुमार्दव-संपन्नता ६ | विभंग ज्ञान विभंग-ज्ञान ब्रह्मलोक कल्प ब्रह्मलोक-कल्प कमंडलु यावत् कमंडलु (भ. २/३१) यावत् नगर से (नगर से) | धर्म कहा। परिषद् धर्म का निरूपण किया, परिषद् सामुदयिक सामुदायिक | यावत् गौतम! (म. ११/७५-७७) यावत् गौतम! | सौधर्मकल्प | सौधर्म-कल्प अन्योन्य-बद्ध | अन्योन्य - बद्ध ३ शोभित यावत् | शोभित (ओवाइयं, सू. १६) | सूत्र ३२) की भांति | वर्णक १५६] ३८ | (उववाई, सूत्र ७०) की भांति वक्तव्यता यावत् जमाली की यावत् | जेसा आप १४ | विहार करने ने यावत् २ उववाई | सू.६३ की वक्तव्यता वैसे | और स्नानघर यावत् | स्वप्न लक्षण पाठक -लक्षण पाठको ३,४ | यावत् १० पा- सरोवर, ११ अग्नि १७, २२ यावत् ११, १८|इष्ट यावत् १५, १७| यावत् ३ है यावत् १ किया यावत् सुकुमाल हाथ पैर वाले, अहीन पंचेन्द्रिय शरीर, ५ | पर यावत् ४ करो यावत् गए यावत् १ पूर्ववत् यावत् सर्वत्र | कुल मर्यादा ने (म.६/१४२) यावत् ओवाइयं में (उक्त है) वैसे और वैसे ही स्नानघर (ओवाइयं, सू. ६३) यावत् स्वप्न-लक्षण-पाठक -लक्षण-पाठकों (म. ११/१३३) यावत् पा-सरोवर, अग्नि ।।१।। (म. ११/१३४) यावत् इष्ट (म. ११/१३४) यावत् (म. ११/१४२) यावत् है (म. ११/१३५) यावत् किया (म.७/१७६) यावत् सुकुमार-हाथ-पैर वाले, अहीन-प्रतिपूर्ण-पंचेन्द्रिय-शरीर वाले, पर (म. ११/१३४) यावत् करो (ओवाइयं, सू. ५५) यावत् गए (म. ११/१४६) यावत् पूर्ववत् (ओवाइयं, सू. ६३) यावत कुल-मर्यादा ६८७) विहार कर रहे थे। | सम्मर्द यावत् -व्यूह यावत् | है यावत् | महाबलकुमार | भोज यावत् प्रकार श्रेष्ठ धर्म कथा की भांति वक्तव्य है। ओवाइयं (सूत्र ७०) में जैसा |( उक्त है वैसा वक्तव्य हैं) (म.६/१४४) यावत् जमाली (म. ६/१५६) की भांति (वक्तव्य है) यावत् ६८६) रहते थे। सम्मर्द (राय. सू. ६८७) यावत् -व्यूह (म. ९/१५८) यावत् है (म. ६/१५८) यावत् महावल कुमार भोज (म. ६/१५६) यावत् प्रकार (म.६/१६०-१६२) श्रेष्ठ धर्म-कथा (रावपसेणियं, सू. ६६३) की भांति (वक्तव्य है) योग्य, शेष पूर्ववत् (भ.६/१६४-१७६) वक्तव्य है राज्याभिषेक (म. ११/५६-६२) है यावत् अभिषिक्त (वक्तव्यता) (म. ६/१८०-२१५) वैसे ही (वक्तव्य है) -जैसा आप कह रहे है ऐसा की (वक्तव्यता वैसे ही वक्तव्य है) (म. २/६४) यावत् २ ५ ६ ५ | पखिाजक आवास परिव्राजक-आवास भांति यावत् भांति (म. २/५२) यावत् कमंडलु यावत् कमंडलु (म. २/३१) यावत् हुआ, वैसे हुआ (म.६/१५०, १५१), वैसे सर्व यावत् सर्व (भ.६/१५१) यावत् है, यावत् है यावत् हैं। इसी प्रकार उववाई (सू. १८५- इस प्रकार जैसे ओवाइयं में उक्त -१६५) की भांति वक्तव्यता। इसी है) वैसे ही (वक्तव्य है) प्रकार संहनन, संहनन, परिवसना इसी परिवसन। ५-६ | योग्य शेष (भ.६/१७३) जमालि की भांति वक्तव्यता १ | राज्याभिषेक २ | है, यावत् अभिसिक्त ५ | वक्तव्यता वैसे ही ५ ६ | सिद्धिकंडिका तक सिद्धिकडिका (ओवाइयं, सू. १८५१६५) यावत्-(सिद्ध) | ६ यावत् सिद्ध ६ पुत्र जन्म राज दण्ड ऋण मुक्त | पुष्प मालाएं जनपद वासी रहे दसाहिक महोत्सव राजा बल ने पुत्र-जन्मराज-दण्ड ऋण-मुक्तपुष्प-मालाएं जनपद-वासी रहे दशाहिक महोत्सव राजा ने ७ की वक्तव्यता वैसे ही (दोनों यावत् बार) | " | यथा परिगृहीत विहार कर रहे थे। १ | महावीर यावत् | पधारे यावत् ४ / यधापरिगृहीत रहते थे। महावीर (म. १/७) यावत् पधारे (ओवाइयं, सू. २२-५२) यावत् ( ३२)

Loading...

Page Navigation
1 ... 542 543 544 545 546