Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पंक्ति
| मनुष्य
पृष्ठ सूत्र
अशुद्ध - जीव क्या
जीव (बहुवचन) क्या २ जीव मूल
जीव (बहुवचन) मूल , है? पृच्छा।
है? (-) पृच्छा। २ हे उत्तर-गुण
हैं, उत्तर-गुण ३ है। , चतुरिन्द्रय-जीवों तक इसी प्रकार |इस प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) वक्तव्य है।
यावत् चतुरिन्द्रय-जीव (वक्तव्य है। • तिर्यग्योनिक और मनुष्य जीव तिर्यग्योनिक (बहुवचन) और मनुष्य
(बहुवचन) जीवों २ | नैरयिक
नैरयिकों |, इन मूल-गुण-प्रत्याख्यानी, उत्तर-गुण- इन जीवों में मूल-गुण-प्रत्याख्यानियों,
|-प्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी उत्तर-गुण-प्रत्याख्यानियों और | जीवों में
अप्रत्याख्यानियों में ४२, भन्ते! मूल-गुण-प्रत्याख्यानी मनुष्यों भन्ते! इन मनुष्यों में मूल-गुण| में पृच्छा।
-प्रत्याख्यानियों में पृच्छा। १ जीव क्या
जीव (बहुवचन) क्या ३ जीव सर्व
जीव (बहुवचन) सर्व २ | नैरयिक सर्व
नैरयिक (बहुवचन) सर्व , चतुरिन्द्रिय-देवों तक इसी प्रकार इस प्रकार (नैरयिकों से लेकर)
(पूर्ति-पण्णवणा, पद २) यावत्
चतुरिन्द्रिय-देव ४ गुणा अधिक है
| गुणा है
पृष्ठ सूत्र पंक्ति
शुद्ध ३ |-बहुत्व भी प्रथम
-बहुत्व भी उसी प्रकार प्रथम ३-४ (सूत्र ४०-४२)
(म. ७/४०-४२) | जीव क्या
| जीव (बहुवचन) क्या जीव जीव प्रत्याख्यानी जीव प्रत्याख्यानी |वक्तव्यता
(वक्तव्यता) | जीव प्रत्याख्यानी
जीव (बहुवचन) प्रत्याख्यानी वैमानिक देवों तक शेष सभी जीव शेष सभी जीव (पूर्ति-पण्णवणा,पद अप्रत्याख्यानी हैं।
२) अप्रत्याख्यानी है यावत् वैमानिका २ | किससे
किनसे
मनुष्यों ३-४ | जीव अशाश्वत हैं। (जीव) अशाश्वत हैं। गौतम!
| गौतम! शाश्वत है?
शाश्वत है? | २ | जिस प्रकार जीव की वक्तव्यता, जीवों की भांति नैरयिक भी
उसी प्रकार नैरयिकों २-३ प्रकार वैमानिक-देवों तक सभी जीव प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २)
यावत् वैमानिक देव | ५ | ग्रीष्म ऋतु
ग्रीष्म-ऋतु | | उष्णयोनिक जीव
उष्णयोनिक-जीव | ५ |जीव स्पृष्ट
जीव से स्पृष्ट दोनों बार
पृष्ठ सूत्र पंक्ति अशुद्ध
शुद्ध
है? जो | २ |समय है।
समय है? प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २)
यावत् वैमानिक की (वक्तव्यता)
है? स्यात् | ३ अशाश्वत हैं,
अशाश्वत है। |" प्रकार यावत् वैमानिक यावत् प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २)
यावत् वैमानिक (भ.७/६३, ६४
की मांति वक्तव्य है) यावत् " में महावीर का समवसरण यावत् में (म.१/४-१०) यावत् (गौतम ने) | गौतम ने कहा
इस प्रकार कहा| नगर में महावीर का समवसरण |(नगर) में (म. १/४-१०) यावत् यावत् गौतम ने
(गौतम ने) इस प्रकार कहाखेचर पंचेन्द्रिय
खेचर-पंचेन्द्रियनगर में महावीर का समवसरण (नगर) में (म. १/४-१०) यावत् यावत् गौतम ने इस
(गौतम ने) इस ७ प्रकार यावत् वैमानिकों प्रकार (पूर्ति–पण्णवणा, पद २)
यावत् वैमानिकों
भी (यही) ३७-३4909-05 सर्वत्र के लिए
में (उपपन्न होने वाले जीव के लिए) " 09-04 सर्वत्र | यही नियम है।
(यही नियम है)।
१०१
...
भी यही
-जीवों की पृच्छा
-जीवों में(-पृच्छा १ इन सर्व-मूल-गुण-प्रत्याख्यानी इन मनुष्यों में सर्व-मूल-गुणमनुष्यों की पृच्छा।
-प्रत्याख्यानियों में(-पच्छा। ३ -प्रत्याख्यानी प्रत्याख्यानी भी प्रत्याख्यानी भी। ५ तिर्यग्योनिक-जीव और मनुष्य तिर्यग्योनिक-जीव (बहुवचन) और |
| मनुष्य (बहुवचन) | वैमानिक देवों तक शेष सभी जीव |शेष (सभी जीव) पूर्ति-पण्णवणा, अप्रत्याख्यानी है।
पद २) अप्रत्याख्यानी है यावत्
वैमानिक देव " | ५३ | १,२ | इन सर्वोत्तर-गुण-प्रत्याख्यानी, देशो- इन जीवों में सर्वोत्तर-गुण-प्रत्या
तर-गुण-प्रत्याख्यानी और अप्रत्या- ख्यानियों, देशोत्तर-गुण-प्रत्याख्यानियों ख्यानी जीवों में
और अप्रत्याख्यानियों में २ विशेषाधिक है? प्रथम विशेषाधिक है? तीनों का अल्प
बहुत्व भी प्रथम प्रकार वैमानिक जीवों तक प्रकार ५४ | ३ की भांति वक्तव्य है। की भांति (नरसिकों से लेकर) (पूर्ति
-पण्णवणा, पद २) यावत् वैमानिकों
(तक वक्तव्य है)। ३ तीनों का
तीनों का ही
६ मूला, यावत्
मूला यावत् | २ |है? गौतम!
गौतम! | असुरकुमार की वक्तव्यता भी इसी | इस प्रकार असुरकुमार भी (वक्तव्य
प्रकार है। विशेष यह है कि है), इतना विशेष है२ | प्रकार यावत् वैमानिकों प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २)
यावत् वैमानिक ४ नहीं है। यावत्
नहीं है यावत् २ है। यावत्
है यावत् है, जो
है? जो इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की इस प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) वक्तव्यता
| यावत् वैमानिकों (की वक्तव्यता)। | इसी प्रकार नैरयिक यावत् वैमानिकों इस प्रकार नैरयिक भी, इस प्रकार
यावत् वैमानिक 'है, जिसकी
है? जिसकी
है यावत् |२३५ ८४,८६, इसी प्रकार नैरयिकों यावत् वैमानिकों इस प्रकार नैरयिक भी यावत्
वैमानिक ८५ " करेंगे जिसकी
करेंगे? जिसकी ८६६ है। जो
है, जो
२३७ / १०२६ प्रकार यावत्
प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २)
यावत् २३८/2+ ५ . . " | १०५ | सर्वत्र | उत्पन्न
उपपन्न |-वेदना होता वाला है -वेदना वाला होता है, व्यन्तर, ज्योतिष्क
वानमन्तरों, ज्योतिष्को ६ असुरकुमार के समान वक्तव्यता। | असुरकुमारों के समान (वक्तव्यता)। ४ | नैरयिक यावत्
नैरयिक भी, इस प्रकार यावत् । २ प्राणातिपात यावत्
प्राणातिपात (म. १/३८४) यावत् " हां, होते हैं।
पूर्ववत्। |" प्रकार यावत्
प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २)
यावत् |-कर्म होते हैं।
|-कर्म की (वक्तव्यता) |-विरमण यावत्
-विरमण (म. १/३८५) यावत् -विवेक यावत्
|-विवेक (ठा. १/११५-१२५) यावत् २, ३ यही नियम है। विशेष यह है- (यही नियम है), इतना विशेष है
३ वक्तव्यता जीवों के समान है। जीवों की भांति (वक्तव्यता)। | ६ | नैरयिक
नैरयिकों के भी, इस प्रकार " सात वेदनीय-कर्म का बन्ध होता है। (सात वेदनीय-कर्म बन्ध की
वक्तव्यता)।
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