Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पृष्ठ सूत्र पंक्ति अशुद्ध २१४ | १३५ | ४ | उत्तरकुरुक्षेत्र
[पृष्ठ सूत्र पक्ति
शुख
शतक ७
.
पृष्ठ सूत्र पंक्ति
अशुद्ध ३, ४ है। अथवा
| यहां १, २, एक वर्ण और एक रूप का
.
है यावत्
है, अथवा | (यहां) | (एक वर्ण और एक रूप का)
|
" | ७
कोदाल यावत्
| ६ | अन्य विकल्प भी ज्ञातव्य हैं
|८
है यावत्
(अन्य विकल्प भी ज्ञातव्य है) (म.| ६/१६३, १६४) (निर्माण)
-
सर्वत्र निर्माण
रत्नप्रभा यावत् है यावत्
| उत्तरकुरु-क्षेत्र है (जीवा. ३/५७८, ५७६, जं. २/७) यावत् कोदाल (जीवा. ३/५८०-५६५, जं. २/८-१३) यावत् हैं (जीवा ३/५६६-६३१, जं. २/१४-५०) यावत् रत्नप्रभा (ठा. ८/१०८) यावत् है (म. १/४६) यावत् हैं (पूर्ति--भ ६/७८)? शब्द भी (वक्तव्य है। १४७. हैं? (भ. १/४८) यावत् बादर-अप्काय (-सौधर्म
१
|२२३ सं. गा.१ | उद्देशक
(उद्देशक) ६ वक्तव्यता।
वक्तव्यता ॥१॥ " में गणधर गौतम ने श्रमण भगवान् में (भ. १/४-१०) यावत् (गणधर महावीर से
गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर से) ५-६ | इस प्रकार चौबीस दण्डक वक्तव्य | इस प्रकार (चौबीस) दण्डक (वक्तव्य है। जीव और एकेन्द्रिय ये दोनों है)-जीव (बहुवचन) और एकेन्द्रिय
(बहुवचन) ये दोनों) ६ शेष सब तीसरे
शेष (सब जीव) (बहुवचन) तीसरे |६-७ | नियमतः आहारक होते है। (नियमतः आहारक होते है।
| करता है। वैमानिक तक सभी करता है। नैरयिकों से लेकर (पूर्तिदण्डकों में यह वक्तव्यता -पण्णवणा, पद २) यावत्
वैमानिकों तक (सभी) दण्डक (इस
प्रकार वक्तव्य है। | ५ |कहा जाता है।
ऐसा कहा जा रहा है। हुआ है।
४
शब्द की वक्तव्यता। | १५७.
? यावत् बादर अष्काय -सौधर्म
५ १
१५०
अ
.
२ हुआ।
ब्रह्म में बादर
ब्रह्म) में (बादर-) बादर पृथ्वीकाय का सूत्र विवक्षित (बादर) पृथ्वीकाय (का सूत्र विवक्षित) है। रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों में बादर- है। (रलप्रमा-आदि) पृथ्वियों में |-अग्निकाय का सूत्र विवक्षित है। (बादर-)अग्निकाय (का सूत्र विवक्षित
..
जड़ का काट दे, भन्ते! है। क्योंकि करता है? गौतम!
»
२
५ | वह बहिर्वर्ती पुद्गलों का ग्रहण (वह बहिर्वर्ती पुद्गलों को) ग्रहण * | वैसा करने में
(वैसा करने में) सर्वत्र | पुद्गल के परिणमन | (पुद्गल का परिणमन) वाले पुद्गल से
वाले (पुद्गल) से पुद्गल तक के परिणमन (पुद्गल का परिणमन)
गन्ध, रस और स्पों की परिणमन गन्धों, रसों और स्पों का परिणमन)। शीर्षक अविशुद्ध लेश्या आदि अविशुद्ध-लेश्या-आदि
१ इस प्रकार का वक्तव्य कैसे हैं? इस प्रकार यह कैसे है? २ | लम्बा. चौड़ा यावत् | लम्बा-चौड़ा (भ. ६/७५) यावत् १ है? भन्ते!
है? (अथवा) २ | है। जीव २ है, जीव
है और जीव २ | है। जीव
है और जीव | असुर-कुमार
असुरकुमार | | प्रकार वैमानिक देवों प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २)
यावत् वैमानिक-देवों ।' इस प्रकार वैमानिक
इस प्रकार (पूर्ति-एग्णवणा, पद २) यावत् वैमानिक-देवों
है और " इसी प्रकार
इस प्रकार भन्ते! इस प्रकार का वक्तव्य कैसे हैं भन्ते! यह इस प्रकार कैसे है? |भवनपति, वानमन्तर, ज्योतिष्क और भवनपति-, वानमन्तर-, ज्योतिष्क
और शीर्षक नैरयिक आदि
नैरयिक-आदि नैरयिक जीवों
नैरयिक-जीवों - वैमानिक
(पूर्ति-पण्णवणा, पद २) यावत
वैमानिक-देवों २ है यावत्
है (म. ५/१०६) यावत् | ग्रहण कर विषय
ग्रहण का विषय
. | १५०/३-४ | बादर-अकाय, बादर तेजस्काय (बादर-) अप्काय, (बादर-) तेजस्(सं.गा. और बादर वनस्पतिकाय का सूत्र काय और (बादर-) वनस्पतिकाय | विवक्षित नहीं है।
(का सूत्र विवक्षित नहीं है) 1911 नरक से लेकर वैमानिक तक सभी (नरक से लेकर) (पूर्ति-पण्णवणा,
पद २) यावत् वैमानिकों तक (सभी) १५१/५ | होता है।
होता है)। होता है।
होता है। , | हैं? यावत्
है? (भ. ६/१५१) यावत्
है यावत् शीर्षक दुःखस्पर्श आदि
जड़ को काट दे, भन्ते! है, क्योंकि करता है?
गौतम! है (भ. ७/३) यावत् दुःखस्पर्श-आदि इस प्रकार (नैरपिकों से लेकर) (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) यावत् वैमानिकों तक (सभी) दण्डक स-अंगार-आदि-दोष निर्ग्रन्थी
प्रकार
शीर्षक | स-अंगार आदि दोष ५, ८ | निग्रन्थी
है? भन्ते!
१३ | होते हैं। कि लवणादि समुद्र
| बरसते है?
२२६ |२६-३५, प्रत्याख्यान के कितने प्रकार प्राप्त | प्रत्याख्यान कितने प्रकार का प्राप्त
१५६ | १ |है यावत्
३ | उदकयोनिक जीव
| हैं। यावत् -६ | द्वीप तथा स्वयम्भूरमण अवसान
| वाले समुद्र ३ | शुभ नाम
द्वीप-समुदों में उत्पाद ज्ञातव्य है।
होते है। लवणादि-समुद बरसते है?
यह अर्थ संगत नहीं है। हैं (भ. ६/१५६) यावत् उदकयोनिक-जीव हैं (जीवा. ३/२५६) यावत् द्वीप-समुद्र स्वयम्भूरमण पर्यन्त
| २ | प्रत्याख्यान के दो प्रकार प्रज्ञप्त है, प्रत्याख्यान दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, प्रकार प्रज्ञप्त हैं,
प्रकार का प्रज्ञप्त है, ३ गाथा-अनागत, अतिक्रान्त गाथा
। अनागत, अतिकान्त
है ॥1॥ | प्रत्याख्यान के कितने प्रकार प्रज्ञप्त प्रत्याख्यान कितने प्रकार का प्रज्ञप्त
| २ | जानना-देखना- दसवें सं. गा.
जानना-देखना-(दसवें
ह
शुभ नामों (द्वीप-समुदों में) (उत्पाद?) (द्रष्टव्य जीवा. ३/६७२-६७४) शान्य है।
ये है) ॥१॥
है।
प्रकार प्रज्ञप्त हैं,
प्रकार का प्रज्ञप्त है,
(१६)