Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 530
________________ अशुद्ध शुद्ध पृष्ठ | सूत्र पंक्ति | ६७ | ३ करने की ज्ञातव्य है (जीवा. ३) यावत् बार, | ६८ | ३ वैमानिक देव करने के सूत्र (म. ६/६४, ६५) वैमानिक-देव हैं ॥१॥ पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध | ३६ | १२ |जीव जीवों . . वाले वाले, | १५ | (नारक, तेजो, वायु, विकलेन्द्रिय, (नारकों, तेजो, वायु, विकलेन्द्रियों | और सिद्ध को वर्ज कर) और सिद्धों को वर्ज कर) १६ | पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और पृथ्वीकायिक, अप्कायिक- और वनस्पतिकायिक वनस्पतिकायिकजीवों -जीवों १९ -रहित जीव -रहित जीवों १६ मनुष्य २०-२२ -दृष्टि जीवों के |-दृष्टि-जीवों के २० | विकलेन्द्रिय जीवों विकलेन्द्रिय-जीवों ' | २२ संयत जीवों संयत-जीवों असंयत जीवों असंयत-जीवों - २३, २६ एकेन्द्रिय एकेन्द्रियों अशुद्ध ४ ज्ञातव्य है, यावत् बार। उनकी लोकान्तिक-विमानों से रलप्रभा यावत् ३ रत्नप्रभा-पृथ्वी यावत् | ४ वक्तव्य है, यावत्१२२-२६१ होता है। १२२६ है। कोई जीव - विवक्षित क्षेत्र के पृथ्वीकाय विवक्षित क्षेत्र के | ४ |-पृथ्वीकाय तमस्काय नहीं है। ८ जाता है। यहां तमस्काय (उनकी) (लोकान्तिक-विमानों से) रत्नप्रभा (भ. १/२११) यावत् । रत्नप्रभा-पृथ्वी (म. १/२१२) यावत् वक्तव्य हैं, (प. १/२१३-२१५) यावत्हुआ, है; कोई (जीव) मनुष्यों ५ ७ , (विवक्षित क्षेत्र के (पृथ्वीकाय विवक्षित क्षेत्र के) (पृथ्वीकाय तमस्काय नहीं है। जाता है यहां (तमस्काय) है (ठा. १/२४८) यावत् हजार-दोवाला (म. ३/४) यावत् त्वरित (म. ३/३८) यावत् गांव है? (म. १/४६) यावत् (तमस्काय) पृथ्वीकाय-रूप में (म. १/४३७) त्रसकाय-रूप में उपपन्न-पूर्व (की बाहरी कृष्णराजियां) | १० | इस प्रकार इस प्रकार (म. १/२११) यावत् ११ अधःसप्तमी पृथ्वी तक ज्ञातव्य है। अधःसप्तमी-पृथ्वी (के विषय में) (ज्ञातव्य है)। | है। कोई जीव है; कोई (जीव) | ५ आ कर आकर हजार-, दोवाला यावत् त्वरित यावत् गांव है? यावत् | तमस्काय पृथ्वीकाय रूप में बसकाय रूप में उपपन्न पूर्व की बाहरी कृष्णराजियां ३४ | २ | " कृष्णराजियां (कृष्णराजियां) | २३ संयतासंयत जीवों संयतासंयत-जीवों २४ नोसंयतासंयत जीव नोसंयतासंयत-जीवों २६ जीव और एकेन्द्रिय जीवों और एकेन्द्रियों २७ जीव तथा एकेन्द्रिय जीवों तथा एकेन्द्रियों | २८ नरयिकों नैरयिकों २८, २६ जीव जीवों ३० और |, जीवों, ३२ | अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी अवधि-ज्ञानी, मनः-पर्यव-ज्ञानी ३७ पदों के तीन पदों में तीन . एकेन्द्रिय जीवों एकेन्द्रिय-जीवों ३८ लेश्या-रहितजीवों लेश्या-रहित-जीवों - सर्वत्र | जीवों में जीव और एकेन्द्रिय जीवों में जीवों और एकेन्द्रियों ४० भंग होते हैं। सवेदक सकषाय-जीवों भंग होते हैं। सवेदक सकषाय-जीवों ४१ नंपुसक-वेदक-जीवों नंपुसक-वेदक-जीवों ४४ जीव और मनुष्य जीवों और मनुष्यों औधिक जीव औधिक-जीव अशरीर-जीव अशरीरी-जीवों अनाहारक जीव अनाहारक जीवों ५०,५१ होते हैं। नैरयिक, देव होते हैं, नैरयिकों, देवों ५० भाषा भाषा-अपर्याप्ति २ |-उक्त दस सूत्रों (५४.६३) 1-उक्त दस सूत्रों (भ. ६/५४-६३)/ | ३ | उनका | २ द्वीप यावत् " वाला यावत् | त्वरित ५ यावत् देवगति १ है यावत् २ | कृष्णराजि के ३ कृष्णराजियां १ में यावत् | ३ | है। पर २-४ | जैसे -संग्रहणी गाथा हैं ॥१॥ (उनका) द्वीप (म. ६/७५) यावत् वाला (म. ३/४) यावत् त्वरित (म. ३/३८) यावत् देव-गति है (म. १/४६) यावत् (कृष्णराजि के (कृष्णराजियां) में (म. १/४३७) यावत् है; पर जैसे-१. अर्चि ६-७ | अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र, अंगुल-के-असंख्यातवें-भाग मात्र, संख्यातवें भाग संख्यातवें-भाग ८ अंगुल अंगुल (अणुओगवाराई, सू.४००) ' | १० | पृथ्वीकायिक जीवों पृथ्वीकायिक-जीवों २११ १२६-२०१ होता है। - | १२६ | ५ नैरयिक जीवों नैरयिक-जीवों (म. ६/१२२) इस प्रकार यावत् अनुत्तरोपपातिक | इस प्रकार (म. ६/२१४, २१५) की वक्तव्यता। यावत् अनुत्तरोपपातिक (वक्तव्य है। - पूर्ववत् ज्ञातव्य है पूर्ववत् (म. ६/१२२) (ज्ञातव्य है) ५ | वह पुद्गलों का (वह पुद्गलों का) | उनसे (उनसे) २११-१२१३०-३१६ आयुष्यमन् आयुष्मन् १३२ | २ | है, सात प्राण सात प्राण ३ है। तीन हजार है ॥२॥ तीन-हजार दृष्ट है ।।३।। हैं ॥१॥ गाथाए। . . ३ 4 . . . . . ४८ १. अर्चि ' १०८| २ | है। यावत् १०६. कृष्णराजियों के | ११० . देवा है यावत् (कृष्णराजियों के देव ॥१॥ | १० | बालाग्र हरिवर्ष १२ | पूर्व विदेह १३ | (और अपर विदेह) | १३४ १३-१४ | मनुष्यों का आठ १ बालानों में ढूंस २ | हुआ है। | होता है। बालाग्र का हरिवर्ष पूर्व-विदेह (और अपर-विदेह) मनुष्यों के आठ बालायों से ढूंस हुआ है ।।२।। होता है ।।३।। सं. गा. |" ' ५ है यावत् नहीं है, सभी जीव हैं (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) यावत् नहीं है, (सभी जीव) २०६ | ११४ सं.गा. . देवों का परिवार है। दिवों का परिवार है) ॥११॥ . (१८)

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