Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ६ : उ. ३ : सू. ३६-४१
भगवती सूत्र गौतम! आयुष्य-कर्म का बंध स्त्री स्यात् करती है, स्यात् नहीं करती। पुरुष स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। नपुंसक स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक
आयुष्य-कर्म का बंध नहीं करता। ३७. भन्ते! ज्ञानावरणीय-कर्म का बंध क्या संयत करता है? असंयत करता है? संयतासंयत करता है? नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत करता है? गौतम! संयत ज्ञानावरणीय-कर्म का बंध स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। असंयत बंध करता है, संयतासंयत भी बंध करता है। नोसंयत-नोअसंयत-नो-संयतासंयत बंध नहीं करता। इसी प्रकार आयुष्य-कर्म को छोड़कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता। प्रथम तीनों संयत, असंयत और संयतासंयत आयुष्य-कर्म का बंध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं
करते। चौथा भंग-नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत नहीं करता। ३८. भन्ते ! ज्ञानावरणीय-कर्म का बंध सम्यग्-दृष्टि करता है? मिथ्या-दृष्टि करता है? सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि करता है? गौतम! सम्यग्-दृष्टि ज्ञानावरणीय-कर्म का बंध स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता, मिथ्या-दृष्टि बंध करता है, सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि बंध करता है। इसी प्रकार आयुष्य को छोड़ कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता। प्रथम दोनों सम्यग्-दृष्टि और मिथ्या-दृष्टि आयुष्य-कर्म का बन्ध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं
करते। सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि नहीं करता। ३९. भन्ते! ज्ञानावरणीय-कर्म का बन्ध क्या संज्ञी (समनस्क) करता है? असंजी (अमनस्क) करता है? नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी (केवली और सिद्ध) करता है? गौतम! संज्ञी ज्ञानावरणीय-कर्म का बंध स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। असंज्ञी बन्ध करता है। नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी बन्ध नहीं करता। इसी प्रकार वेदनीय-कर्म और आयुष्य-कर्म को छोड़ कर छह कर्म-प्रकृतियों के बन्ध की वक्तव्यता। प्रथम दोनों संज्ञी और असंज्ञी वेदनीय-कर्म का बन्ध करते हैं; तीसरा-नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी स्यात् बन्ध करता है, स्यात् नहीं करता। प्रथम दोनों संज्ञी और असंज्ञी आयुष्य-कर्म का बन्ध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। तीसरा-नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी बन्ध नहीं करता। ४०. भन्ते! ज्ञानावरणीय-कर्म का बन्ध क्या भविसिद्धिक करता है? अभवसिद्धिक करता है? नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक करता है? गौतम! भविसिद्धिक ज्ञानावरणीय-कर्म का बन्ध स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। अभवसिद्धिक बंध करता है। नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक बन्ध नहीं करता। इसी प्रकार आयुष्य-कर्म को छोड़ कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता। प्रथम दोनों भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक आयुष्य-कर्म का बन्ध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक बन्ध नहीं करता। ४१. भन्ते! ज्ञानावरणीय-कर्म का बन्ध क्या चक्षुदर्शनी करता है? अचक्षुदर्शनी करता है? अवधिदर्शनी करता है? केवलदर्शनी करता है?
१९८८