Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १० : उ. ४,५ : सू. ६०-६८ शक्र की भाति वक्तव्यता, इतना विशेष है-चंपानगरी में यावत् देवराज देवेन्द्र ईशान के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में उपपन्न हुए। भंते! जिस समय से वे चंपानगरी में तैतीस परस्पर सहाय्य करने वाले गृहपति रहते थे, शेष पूर्ववत् यावत् कुछ च्यवन करते हैं, कुछ उपपन्न हो
जाते हैं। ६१. भंते! देवराज देवेन्द्र सनत्कुमार के त्रायस्त्रिंशक-देव त्रायस्त्रिंशक-देव हैं?
हां, हैं। । ६२. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है?
धरण की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् प्राणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार अच्युत की वक्तव्यता यावत् कुछ च्यवन करते हैं, कुछ उपपन्न हो जाते हैं। ६३. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
पाचवां उद्देशक
देवों का अंतःपुर के साथ दिव्य-भोग-पद ६४. उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था। गुणशीलक चैत्य यावत् भगवान् ने धर्म कहा। परिषद वापस नगर में चली गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के बहुत अंतेवासी स्थविर भगवान् जाति-संपन्न जैसे आठवें शतक के सातवें उद्देशक (सूत्र २७२) की वक्तव्यता यावत् संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए रह रहे थे। उन स्थविर भगवान् के मन में एक श्रद्धा (इच्छा) एक संशय (जिज्ञासा) जैसे गौतम स्वामी की वक्तव्यता यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले६५.भंते! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं?
आर्य ! पांच अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे- काली, राजी, रजनी, विद्युत्, मेघा। उनमें से प्रत्येक देवी के आठ-आठ हजार देवी का परिवार प्रज्ञप्त हैं। ६६. भंते! क्या एक एक देवी अन्य आठ-आठ हजार देवी-परिवार की विक्रिया (रूप
-निर्माण) करने में समर्थ है? हां, है। इसी प्रकार पूर्व-अपर-सहित चालीस हजार देवी-परिवार विक्रिया करने में समर्थ है।
यह है तुडिय (अंतःपुर) की वक्तव्यता। ६७. भंते! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर चमरचंचा राजधानी की सुधर्मा सभा में चमर सिंहासन पर अंतःपुर के साथ दिव्य भोग भोगता हुआ विहरण करने में समर्थ है?
यह अर्थ संगत नहीं है। ६८. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-असुरकुमारराज असुरेन्द्रचमर चमरचंचा राजधानी में यावत् दिव्य भोग भोगता हुआ विहरण करने में समर्थ नहीं है? आर्यो! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर चमरचंचा राजधानी की सुधर्मा सभा में माणवक चैत्य स्तंभ में वज्रमय गोलवृत-वर्तुलाकार पेटियों में जिनेश्वर-देव की अनेक अस्थियां रखी हुई हैं,
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