Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 519
________________ पृष्ठ सूत्र पंक्ति १ सं. गा.१ पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध |" पृथ्वीकायिक-जीवों | नैरयिक-जीवों की अशुद्ध प्रथम उद्देशक हैप्रश्नोत्तर६ गुरुक १० चलमान चलित । नगर का शतक १ पृष्ठ | सूत्र |पंक्ति अशुद्ध शुख ३८ | ५ | सामान्य जीव की भांति वक्तव्य है। सामान्य जीवों की भांति (वक्तव्य है). शीर्षक मान आदि मान-आदि १, २ जा रहा है जा रहा है-असंवृत पृथ्वीकायिक-जीवों (भ. १/७६-८१) नैरयिक-जीवों (भ. १/६०-६८, (प्रथम उद्देशक है(प्रश्नोत्तर६. गुरुक १०. चलमान चलित ॥१॥ (नगर का) ७२, ७३) की | २ असंवृत शीर्षक मनुष्यों आदि का समान आहार, मनुष्यों-आदि का समान-आहार, समान शरीर आदि पद समान-शरीर-आदि-पद ८६,६ सर्वत्र | उपपन्न -उपपन्न देवरूप वहां ५५ १ अप्रतिहत प्रवर ज्ञान-दर्शन रह रहे है। नगर से भगवान ने नगर में (उकडू आसन की मुद्रा में) अप्रतिहत-प्रवर-ज्ञान-दर्शन रहते हैं। (नगर से) (भगवान ने) (नगर में) (उकडू-आसन की मुद्रा में) ६ नहीं होती १० जो संयता-सयंत १ की तरह वक्तव्य हैं। २ है-(व्यंतर-देवों ३ नैरयिक सू.१/६०-७३), | १५ । सं. गा." समान, कर्म, वर्ण लेश्या, २ ज्ञातव्य हैं। १०२/ ३ (पण्णवणा) सर्वत्र | काल नहीं होती जो संयतासयंत (म.१/७४) की भांति (वक्तव्य है), है-वानमंतर-देवों नैरयिक म.१/६०-७३), समान आहार, कर्म, वर्ण, लेश्या, ज्ञातव्य है ॥१॥ (पण्णवणा के |-काल | रहते हैं। १०३./ (उसका) | आयुष्य कर्म आयुष्य-कर्म देव-रूप राजगृह नगर में भगवान का राजगृह नगर में (भगवान् का) किया। भगवान् ने किया (म. १/-१०) यावत् (भगवान ने | २ गौतम स्वामी बोले- गौतम स्वामी) इस प्रकार बोले" (नैरयिक से लेकर) वैमानिक इस प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) तक इसी प्रकार वक्तव्य है। | (नैरयिक से लेकर) यावत् वैमानिक | तक चौबीस दण्डक (वक्तव्य है)। (नैरयिकों से लेकर) वैमानिकों इस प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) तक इसी प्रकार वक्तव्य है। | (नरयिकों से लेकर) यावत् वैमानिकों तक (वक्तव्य हैं। ३ | जैसे-दुःख जैसे-म. १/५३-५८ में) दुःख शीर्षक नैरयिक आदि जीवों का समान नैरयिक-आदि जीवों का जीवों | आहार, समान शरीर-आदि- का समान आहार, समान-पद | शरीर आदि-पद बार-आर बार-बार ६ करते हैं, और करते है, २-३ | पूर्व उपपन्न और पश्चाद् उपपन्ना पूर्व-उपपन्न और पश्चाद्-उपपन्न। इनमें जो पूर्व उपपन्न हैं, (उनमें) जो पूर्व-उपपन्न है, | इनमें जो पश्चाद् उपपन्ना उनमें जो पश्चाद्-उपपन्न असुरकुमार-देव असुरकुमार-देव नैरयिक जीवों की भांति वक्तव्य है। नैरयिक-जीवों (म. १/६०-६७) की भांति वक्तव्य है, ३ है-नारकीय जीवों है-नैरयिक-जीवों ४ (पूर्व उपपन्न (पूर्व-उपपन्न | असुरकुमार देव असुरकुमार-देव | पश्चाद् उपपन्न पश्चाद्-उपपन्न शेष नैरयिक शेष नैरयिकों इसी प्रकार नागकुमार से लेकर इसी प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद स्तनितकुमार (नागकुमार से लेकर) यावत् स्तनित काल १४ | ३ पण्णवणा के 'उच्छ्वास-पद' (७) | ‘उच्छ्वास-पद' (पण्णवणा, ७/१) १५ २, ३ 'आहार-पद' के प्रथम उद्देशक की प्रथम आहार-उद्देशक भांति (२८/१-२४) की भांति सं. गा. ४ करते है? करते हैं? ।।१।। " १६ १, ५ | नैरयिक जीवों नैरयिक-जीवों * | १५ शीर्षक संग्रहणी गाथा | | २ परिणत, संग्रहणी गाथा परिणत, सं. गा. २ वक्तव्य है (वक्तव्य है) ॥१॥ | २६ | ५ वर्तमान- काल-समय वर्तमान-काल-समय सं. गा. २ | होती है। होती है ।।१।। २८-३१ सर्वत्र |-प्रदेशों (-प्रदेशों) ३२ | ३ |'आहार-पद' के प्रथम उद्देशक की | प्रथम आहार-उद्देशक (२८/१) की| भांति वक्तव्य है-पन्ते! भांति वक्तव्य है-'भन्ते! ४ करते है? करते हैं?' यावत् वे यावत् 'वे करते हैं, यहां तक वक्तव्य हैं। करते हैं, यहां तक (वक्तव्य है)। , इस प्रकार यावत् इस प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) यावत् मनुष्य 'जीव' मनुष्य जीवों वक्तव्य है। (वक्तव्य है), | अन्तर है कि अन्तर हैनैरयिक की भांति नैरयिकों की भांति | सामान्य जीव की भांति वक्तव्य हैं। सामान्य जीवों की भांति (वक्तव्य है)। अप्रमत्त संयत अप्रमत्त-संयत ३ उसका | अवस्थान-काल -अवस्थान-काल, |-काल यहां पण्णवणा का अंतक्रियापद | यहाँ अंतक्रियापद (पूर्ति-पण्णवणा, पद २० पद २०) असंयमी संयम असंयमी, संयम वाले असंजी, वाले, असंज्ञी, १४ कल्प में, तियेच -कल्प में, तिर्यच १,२ प्रकार की प्रज्ञप्त है प्रकार का प्रज्ञप्त है। ३ करता है। करता है, | ४ करता है। करता है, ५-१२ | पल्योपम के असंख्येय भाग पल्योपम-के-असंख्येय-भाग | ३ | अल्प है। अल्प है, १ (असुरकुमारों से लेकर) वैमानिकों | इस प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) | तक सभी दण्डक इसी प्रकार (असुरकुमारों से लेकर) यावत् वैमा |निकों तक सभी दण्डक वक्तव्य है। | | |द्वारा वैमानिकों तक सभी दण्डक द्वारा (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) यावत् वैमानिकों तक सभी दण्डक (वक्तव्य है)। १२६, १ | यहां भी यहां भी (पूर्ति-पण्णवणा, पद २ १२७ सं. गा. २ | भेद हैं। भेद है ।।१।। १३१/१,२ | है, जो है जो १३२ " है, वही है वही | वक्तव्य है। | नैरयिक जीवों की भांति अप्कायिक-जीवों से लेकर २ १ यावत् नैरयिक-जीवों (भ. १/७२, ७३) की भांति (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) (अपकायिक-जीवों से लेकर) यावत्

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