Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध
३ . अनगार यावत् ४ |४, ५ | उस समय
४ | होता है, यावत् उस समय | ६ | उस समय
- भाग में ७,६५, ६ गौतम! यह सब ऐसा ही है।
पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध | २७५ | २ | महाभीमा किन्नरों
| महाभीम ॥११॥
किन्नरों ३ गीतयशा।
| गीतयशा ।।२।। २७७६ हैं जहा
है। जहां | राजगृह नगर में भगवान् गौतम राजगृह नगर (म. १/४-१०) यावत्
भगवान् महावीर की पर्युपासना (भगवान् गौतम भगवान् महावीर करते हुए इस
की पर्युपासना करते हुए) " ५ | उद्देशक यहां
| उद्देशक (३/६६८-१०३७) यहां २८० , राजगृह नगर में भगवान् गौतम राजगृह (नगर में) (म. १/४-१०) भगवान् महावीर से यावत् (भगवान् गौतम भगवान
महावीर से) '| ३ | क्रमशः अच्युत
क्रमशः (ठा. ३/१४३-१६०, जीवा. |३/२३५-२५८, १०४०-१०५५)
यावत् अच्युत४ कल्प
शतक ४ सं. गा.१ उद्देशक हैं।
उद्देशक हैं ॥११॥ नगर में भगवान....करते हुए (नगर में) (भ. १/४-१०) यावत्
(भगवान .... करते हुए)
११, १२
पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध
|, अस्पृष्ट होकर २ वह
| गौतम! यह स्यात् २ करता है। शीर्षक ओदन आदि
३ है। यावत् | २ | यावत् जीवाजीवाभिगम् (३/
७०६-७६५) ३ के लोक-स्थिति लोकानुभाव
यह किस प्रकार भन्ते! जो जीव
maradun
शुद्ध अनगार (म. १/६, १०) यावत् (उस समय) होता है यावत् (उस समय) (उस समय भाग में) गौतम! यावत् होती है। (यह सब ऐसा ही है।) (अठारह मुहूर्त का उत्कृष्ट) (वर्षा का प्रथम समय) (प्रथम समय) (वर्षा का) ग्रीष्म (म. ५/१३-१५) यावत् (वक्तव्य है)। इनके वक्तव्य हैं। है (म. ५/१३, १४) यावत् (अभिलाप) आयुष्मन् श्रमण! गौतम! पूर्ववत् (पूर्ण पाठ प्रश्नवत्) | उस प्रकार (आलापक) निरवशेष वक्तव्य है (म. ५/३), इतना
५ | अठारह मुहूर्त का उत्कृष्ट ७ वर्षा का प्रथम समय ८ प्रथम समय ३ वर्षा का २ ग्रीष्म यावत् ३ वक्तव्य है। इसके
| उसने आयुष्य इस प्रकार यावत्
| अस्पृष्ट रहकर (वह) गौतम! (वह) स्यात् करता है? ओदन-आदि है (भ. २/१३६) यावत् जीवाजीवाभिगम (३/७०६-७६५) यावत् लोकस्थिति, लोकानुभाव यह इस प्रकार भन्ते! जो भव्य (नैरयिकों में उपपत्र होने की योग्यता-प्राप्त) जीव (उसने) वह आयुष्य इस प्रकार (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) | यावत् देवों का दण्डक ज्ञातव्य है जो भव्य (जिस योनि में उत्पत्र होने की योग्यता प्राप्त) (जीव) मनुष्य का आयुष्य? जिस योनि में शब्द-श्रवण सुनता है? (अथवा) शंख-शब्द यावत् क्या (वह) उन
होते है।
" | देवों के दण्डक तक ज्ञातव्य है १,४ जो जीव
३ है। यावत्
अभिलाप ४,५ आयुष्यमन् श्रमण!
गौतम! पूर्ण पाठ प्रश्नवत् १ | उसी प्रकार
आलापक २ अविकल रूप से ३ वक्तव्य है। विशेषतः
३ | ४ | ऊपर यावत् ईशाननाम
ऊपर (पण्णवणा, २/५१) यावत् ईशान नाम वहां (पण्णवणा, २/५१) यावत्
|"
वहां पांच
पांच
सुनता है।
.
वक्तव्यता यावत्
ज्ञातव्य है यावत् ३ वक्तव्य है।
ज्ञातव्य है यावत्
नहीं होती यावत् १ वक्तव्यता है, २ वक्तव्यता है उसी
| है। आयुष्यमन् श्रमण! १ नगर में भगवान्
| ३ तीसरे शतक में शुक्र तीसरे शतक (म. ३/२५०-२७१)
में शक ५१,२ अविकल रूप से ज्ञातव्य है, केवल | निरवशेष (ज्ञातव्य है), इतना अन्तर
है५ स्थिति एक तिहाई भाग कम दो (स्थिति) एक-तिहाई-भाग-कम-दोपल्योपम
पल्योपम (१* पल्योपम) स्थिति दो
(स्थिति) दो स्थिति एक तिहाई भाग अधिक दो स्थिति एक-तिहाई-भाग-अधिक-दो पल्योपम (२८) की है। -पल्योपम (२% पल्योपम) की है। स्थिति एक
(स्थिति) एक की है ।।१।।
ज्ञातव्य है (म. ३/२५०-२७१) | उद्देशक ज्ञान
उद्देशक (१७/६०-११३) ज्ञान ४ उद्देशक
उद्देशक (१७/११४-१४६) २ अल्पबहुत्व
अल्पबहुत्व ।।२।।
को भी सुनता है? अधः सुनता है? गौतम! (वह) ऊर्ध्व(में विद्यमान शब्दों) को भी सुनता
मनुष्य का आयुष्य जिस योनि से शब्द श्रवण | सुनता है अथवा | शंख-शब्द, यावत्
| क्या उन १२ सुनता है? | १६ | को सनता
| २० | है, अधः - R०, २५ सुनता है, " | २२ गौतम! ऊर्ध्व|" में विद्यमान शब्दों को सुनता २४, २४. . २५ | है, मध्य ३३ | नहीं सुनता है। ३५ | सुनता है। २ है या
है अथवा
हंसता है, उस २ उत्सुक केवली
हैन
जीव चारित्र | है। वह | अपेक्षा से कहा
२-३
(वक्तव्यता) (भ. ५/४) यावत् ज्ञातव्य है (म. ५/५-१८) यावत् वक्तव्य है (म. ५/३)। ज्ञातव्य है (म. ५/५-१८) यावत् नहीं होती (भ. ५/१६) यावत् वक्तव्यता है (भ. ५/२१-२३), वक्तव्यता है (म. ५/२४-२७) उसी है, आयुष्मन् श्रमण! नगर में (भ. १/४-१०) यावत् (भगवान् करते हुए) इस प्रकार (बात चलते हैं। है (पूर्ति म. ५/३१)? है (पूर्ति म. ५/४०)?
है? मध्य नहीं सुनता। सुनता है? है? (अथवा) है? (अथवा) हंसता है और उत्सुक होता है, उस
ज्ञातव्य है
. . करते हुए इस प्रकार १५४ | ३५ " बात चलते हैं। १५४ ३६-३६/ सर्वत्र | है? (५/३१ की तरह)
४१-४२, ? (५/४० की तरह)
केवली
" ४३, ४५ सर्वत्र
शतक ५
(म. ५/४०) यावत् महावात चलते हैं। है (पूर्ति म. ५/४०)?
है और न जीव जो चारित्र है, वह अपेक्षा से यह कहा
१४६ |
२ | २
पधारे यावत्
यावत् महावात चलते हैं। (५/४० की तरह) है? (५/४० की तरह)
(१४)
पधारे (म. १/७, ८) यावत्
४५ १