Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 525
________________ पृष्ठ सूत्र पंक्ति ११८ १०६ ६ ... * * * * * *. १२१ १२२ १२३ १११ १२० ११२ १३ १२४ W १२४ १२५ १२६ .... १२७ 990 ३ ་ ་ ཆ ११२ ११६ १२०-२१ १२२ १२३ ************ ** **.*. 30 m = 30 1 NN. 2 १२४ १२५ १२६ १२६ ११६ ४ १३१ mr us ১0 १३४ १४२ ६ " ५ विजय ४ १३० १५२ २१ २२ ३६ ८. १२ १३३ १२ २ ८ १७ पर यावत् 21 22 गए हैं। शुक्र है, है वह होकर यावत् यावत् है। समवहत हो कर यावत् वैक्रिय समुद्घात घोर घोर भयंकर, भयंकर सौधर्म कल्प " अशुद्ध वैमानिक देवों है। तिरछे है। नीचे संख्येयगुणा है। ऊपर संख्येयगुणा वज्र के संख्येयगुणा साथ यावत् करता है अवक्रमण कर यावत् शुरू पर ( ओवा २/४०, म. ३ / १६) यावत् गए। -विजय शुक्र है है। वह होकर (रायपसेणियं, सू. १०) है, समवहत हो कर रायपसेणियं, सू. १०) यावत् वैक्रिय-समुद्घात घोर घोर भयंकर भयंकर सौधर्म कल्प वैमानिक -देवों है, तिरछे " है, नीचे संख्येय-गुणा है, ऊपर संख्येय-गुणा (वज्र के) संख्येय-गुणा साथ (भ. ३/४) यावत् साथ (रायपसेणियं, सू. ५८) यावत् करता है, अवक्रमण कर (रायपसेणियं, सू. ६५-१२०) यावत् सौधर्म- कल्प सौधर्म कल्प था भगवान महावीर वहां पधारे। परिषद् आई यावत् धर्म सुनकर था यावत् था - ( म. १/४-८) यावत् (धर्म सुनकर ) या (भ. १/२६६-२८६) यावत् (उसका ) उसका प्रमाद और योग- इन दो हेतुओं से (प्रमाद और योग- इन दो हेतुओं से) यहां वक्तव्यता लोक (यहाँ) वक्तव्यता यावत् (जीवा. ३/७२३-७६५) लोक ज्ञातव्य है। १३० १५२ ५-६ ( जीवा. ३/७२३-७६५) तक ज्ञातव्य है। १३०-३११५४-५० सर्वत्र अनगार १३१ १६० १ (अनगार) ( यावत् ?) (यावत्) १६० ६२ १ २ प्रत्येक के चार-चार भंग होते हैं। (प्रत्येक के चार-चार भंग होते हैं) । पृष्ठ १३१ १३३ ............ १३३ १३४ १३५ ....... a. सूत्र पंक्ति १६३ १५० १३७ तू १८२ " १८३-८४ १८५ जो जीव ४-५ नैरयिको १८४ २, ४ ज्योतिष्क देवों १६८, २०० २०१ २०३ १३६ २०५ २०४ ..... २ १८६ शीर्षक १६४ " ३ २ १६६ ४ ६ १ ३ १ २ १३६ २०५ ४. १३६ २०५-०७ " " २१६ २२०-२१ १ वैमानिक देव १४० २४० २४२ ३ १ ३ २०६ १ २०७ २०८ 9 २१७ १ ३. १३७ सं. गा. शीर्षक 9. . यहां भी -रूप की वक्तव्यता है, यान के विषय में इसी प्रकार युग्य शिबिका, के संबंध में २ २ ३ देवरूप भावितात्म-विकुर्वणा- पद -रूप यावत् यावत् है, और से यावत् वक्तव्यता लिए हुए, पुरूष की वक्तव्यता वही (सूत्र १६६ की ) वक्तव्यता भावितात्मा रूप में किए हुए, पुरुष कया वही (सूत्र १६६ की ) भावितात्मा रूप में पर्यस्तिकासन अभियोजना ज्ञातव्य है। अशुद्ध वही (सूत्र १६६ की ) द्वि (पूर्ण) पर्यकासन W - इस ሼ X है। रूप यावत् (सूत्र १६६ ) ( १३ ) (यहां भी) -रूप (उक्त है), ( यान के विषय में) युग्य शिविका शुद्ध ( के संबंध में) उसी प्रकार (जो जीव) (नैरयिकों) (ज्योतिष्क- देवों) वैमानिक -देवों भावितात्म-विकुर्वणा-पद X -रूप (म. ३/१६४) यावत् (भ. ३/४ ) यावत् है और से (भ. ३ / १६४) यावत् (वक्तव्यता) लिया हुआ (पुरुष) भी पूर्ववत् (भ. ३ / १६६) (वक्तव्यता) (भावितात्मा रूप में) किया हुआ (पुरूष) भी क्या पूर्ववत् (भ. ३ / १६६) (भावितात्मा रूप में) पर्यस्तिकासन में बैठा हुआ (पुरुष) भी | पूर्ववत् (भ. ३ / १६६) द्वि(पूर्ण)- पर्यंकासन में बैठा हुआ (पुरुष) भी (अभियोजना ज्ञातव्य है) देव-रूप संग्रहणी गाथा - ( इस हैं) ||9|| रूप (म. १/४६) यावत् (म. ३ / १६६) पृष्ठ सूत्र पंक्ति १४० २४३ 9. ....... १४१ ....... १४३ ........... १४४ १४५ २४५ २४७ १४२ २५४ " २४८ १४६ २५० २५१ २५३ २५८ २५६ स. गा. २५२ २ ३ २६० २६१ २६३ २७२ २५६ ३ ३ 7 २७३ १४५ २७४ ...m or r s २७४ ३ २ २७५ सं. गा. २ ५ २६७ २६८ | २७० ३ १२ " ४ ३ ४ " 20 १५ अशुद्ध शुद्ध इसी प्रकार सनिवेश रूप तक ग्राम इस प्रकार (म. १/४६) यावत् -रूप की भाँति वक्तव्य है। ( ग्राम रूप की भांति वक्तव्य है)। हैं (पूर्ति पण्णवणा, पद २) (भगवान की) ( गणधर गौतम ) (उसके) (इनके) शतंजल १८ 9 है। भगवान की गणधर गौतम उसके इनके स्वयंज्वल तक यहां वक्तव्य है। केवल सूर्याभ के स्थान पर सोमदेव वक्तव्य है। आधा है यावत् विद्युत्-कुमार वात-कुमारियां अभ्रवृक्ष पांशुवृष्टि लाकपाल सौधर्मकल्प टिड्डी, आदि काल महाकाल, असिपत्र, हुए यावत् कोल-पाल ११ जलकान्ता दिक्कुमार देवों का देव यम के पुत्रस्थानीय हैं। त्रिभाग अधिक एक पल्योपम स्वयंजल वाह, यावत् क्षय, तथा है। तथा हो। वहां ऋद्धिवाला सामर्थ्यवाला नगर में भगवान गौतम भगवान अंजन। स्तनितकुमार देवों भांति (३ / २७२) भूतों के सूरूप (यह वक्तव्य है), इतना अन्तर है(सूर्याभ के स्थान पर) सोम देव (वक्तव्य है)। आधा ज्ञातव्य है (रायपसेणियं, सू. २०४-२०८) (म. २/ १२१) यावत् विद्युत्कुमार वातकुमारियां अन-वृक्ष पांशु-वृष्टि लोकपाल सौधर्म कल्प टिड्डी आदि काल, महाकाल 119 1 असिपत्र, (देव यम के पुत्रस्थानीय हैं) ||२|| त्रिभाग अधिक-एक पल्योपम शतंजल वाह (भ. ३/२५८) यावत् क्षय तथा ह तथा हाँ, वहां ऋद्धि वाला सामर्थ्य वाला नगर में (भ. १/४-१०) यावत् (भगवान गौतम भगवान महावीर की) हुए (भ. ३/४ ) यावत् कोलपाल जलकान्ता अंजना दिक्कुमार देवों का स्तनितकुमार देवों भांति (म. ३/२७२ ) भूतों के सुरूप

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