Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 524
________________ है यावत् पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध १०७ ५ रूखा यावत् समय बलिचंचा ३८ | ११ | हो कर ३८ | १३ और द्रव्य देवगति HOE-१० सर्वत्र सर्वत्र बाल तपस्वी bot-११ सर्वत्र सर्वत्र असुरकुमार देव और देवियां | " ४२,४३१,३ | ईशान कल्प " | ४ अंगुल के असंख्येय भाग ४५ | २ | देवेन्द्र रूप ५ | देवगति ८ स्तर पर सर्वत्र | और देवियों ६ | देव रूप | १ प्रज्ञप्त हैं। x | सकते हैं? गौतम! रूखा (भ. ३/३५) यावत् समय में बलिचंचा हो कर (रायपसेणियं, सू. १०) यावत् | और दिव्य देव-गति बाल-तपस्वी असुरकुमार-देव और -देवियां ईशान-कल्प अंगुल-के-असंख्येय-भाग देवेन्द्र-रूप देव-गति स्वर से और -देवियों देव-रूप प्रज्ञप्त है? हां, (वह) समर्थ है। सकते हैं? गौतम! था ||१|| पृष्ठ सूत्र पंक्ति अशुद्ध । शुद्ध १२ हैं। यह है? यह | ३ | पूर्ववत् वक्तव्य है पूर्ववत् (भ. ३/१७) (वक्तव्य है) ७,८ सकते हैं। शेष है, भन्ते! है। भन्ते! " प्रकार द्वितीय प्रकार कहकर द्वितीय है (भ. ३/१६) यावत् ४-५ पूर्ववत् वक्तव्य है | पूर्ववत् (भ. ३/१६) (वक्तव्य है) है। शेष वक्तव्यता | है, शेष (वक्तव्यता) भद्र यावत् भद्र (म. ३/१७) यावत् | ईशान कल्प | ईशान-कल्प ६ | अंगुल के असंख्यातवें भाग अंगुल-के-असंख्यातवें-भाग | तिष्यक के तिष्यक (भ. ३/१७) के ११ में ज्ञातव्य है, केवल इतना में भी (ज्ञातव्य है), इतना है। शेष वक्तव्यता है, शेष (वक्तव्यता) | पटरानियों के पटरानियों (भ. ३/५-७) के ज्ञातव्य है (ज्ञातव्य है) १५ है। किसी है, किसी में ज्ञातव्य है, में भी (म. ३/१६) (ज्ञातव्य है), | सकता है। और सकता है और " द्वीप द्वीप३ | समुद्रों -समुद्रों ४ |इसी प्रकार सामानिक इस प्रकार भ. ३/५-७) सामानिक " ये सब ज्ञातव्य हैं। (ये सब ज्ञातव्य है)। ५, ६ द्वीपसमुद्रों द्वीप-समुद्रों ३ में ज्ञातव्य है, में भी (ज्ञातव्य है), ५ लान्तक कुछ लान्तक भी, इतना अन्तर है-कुछ ७ प्राणत-बत्तीस प्राणत भी, इतना अन्तर है-बत्तीस ८ अच्युत-कुछ अच्युत भी, इतना अन्तर है-कुछ " है। शेष सब है, शेष सब ६ उसी प्रकार हैं। | पूर्ववत् (वक्तव्य है। है। भन्ते! " प्रकार तृतीय प्रकार कहकर तृतीय २ करने लगे। करते हैं। १ (द्रष्टव्य-भ. १/ (द्रष्टव्य-म. १/ | ईशान कल्प ईशान-कल्प | रायपसेणईयं के राय. (सू. ७-१२०) के ४ नगर यावत् नगर (म. १/४६) यावत् | तेजस्वी तेजस्वी (म. २/६४) | १३ | पर यावत् (भग. २/६६) सहस्ररश्मि | पर (म. २/६६) यावत् सहस्ररश्मि २४, २५/ के ऊंच नीच और मध्यम कुलों के ऊंच-, नीच- और मध्यम-कुलों " |४८ | उच्च, नीच और मध्यम कुलों उच्च-, नीच-, और मध्यम-कुलों ३५ | १ |बालतपः बाल-तपः पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध शुद्ध | असुरकुमार-देवों का उन (असुरकुमार-देवों) का ३ | असुरकुमार-देव (असुरकुमार-देव) (सौधर्म कल्पवासी (सौधर्म-कल्पवासी ५ छोटे, रत्नों छोटे रत्नों , असुरकुमार-देव (असुरकुमार-देव " हैं। तब वैमानिक देव है।) तब वैमानिक-देव ३ | वैमानिक-देव तत्पश्चात् (उन देवों द्वारा रत्नों को चुराने के पश्चात् वैमानिक देव) | यह बात संगत | यह अर्थ संगत लोक में, यावत् सौधर्म कल्प | लोक में यावत् सौधर्म-कल्प ५ अर्हत, अर्हत अर्हत, अर्हत्२ | यह बात संगत यह अर्थ संगत सौधर्म कल्प सौधर्म-कल्प १ | है यावत् है (भ. ३/४) यावत् | दृष्टान्त वक्तव्य दृष्टान्त (म. ३/२६) वक्तव्य १ समय उसी समय में उसी तजस्वी यावत् तेजस्वी (भ. २/६४) यावत् कुटुम्बजागरिका कुटुम्ब-जागरिका ६ द्रव्यों से से | विहरण कर रहा हूँ? रहता हूँ? | १३ | पर याक्त् पर (म. २/६६) यावत् ८, १९ कुटुम्बीजनों कुटुम्बी-जनों | २५ | ऊंच, नीच और मध्यम कुलों ऊंच-, नीच- और मध्यम-कुलों | १ | बालतपस्वी बाल-तपस्वी बाल-तपः ५ रूखा, यावत् रूखा (म. ३/३५) यावत् ६ | तापस जीवन तापस-जीवन १२, २० अर्घ निवर्तनिक अर्ध-निवर्तनिक | १५ | पर यावत् पर (म. २/६६) यावत् | ३ | विचरण गामानुग्राम | विचरण करता हुआ, ग्रामानुग्राम १ बालतपस्वी बाल-तपस्वी | उपपात सभा में यावत् इन्द्र रूप उपपात-सभा में (म. ३/४३) यावत् इन्द्र-रूप २ |से यावत् से (भ. ३/१७) यावत् -कल्प तथा ध्यान -कल्प तक ध्यान ३ देखता है-देवेन्द्र देखता है देवेन्द्र ३ शक्र को। शक्र को ॥ ५ के सामने निर्मल के समान निर्मल से रखांकित से रेखांकित ८ | यावत् दशों दिशाओं का (ओवा. २/४०) यावत् दशों दशाओं अ - बालतपः ४ इन्द्रों का (इन्द्रों का) ४, ५ दर्शन वार्तालाप करणी विवादोत्पत्ति दर्शन, वार्तालाप करणीय विवादोत्पत्ति ५ सनत्कुमार की भव्यता आदि सनत्कुमार की भव्यता (आदि है) ॥२॥ था, यावत् था यावत् (परिवृत था) यावत् (परिवृत था) रायपसेणइयं, (सू. ७-१२०) यावत् " रत्नप्रभा पृथ्वी रत्नप्रभा-पृथ्वी यह बात संगत यह अर्थ संगत १ प्रकार यावत् प्रकार (अणुओगदाराई सू.२८७) यावत् | " सौधर्म कल्प के नीचे यावत् सौधर्म-कल्प के नीचे (अणुओग- | -दाराई, सू. २८७) यावत् | ३ यह बात संगत यह अर्थ संगत |२, ३ | रत्नप्रभा पृथ्वी में असुरकुमार देव | रत्नप्रभा पृथ्वी में असुरकुमार-देव ३ वक्तव्यता है, यावत् वक्तव्यता है (पण्णवणा, २/३१) | यावत् भाग करते भोग करते उनकी गति का विषय (उनकी गति का विषय - असुरकुमार-देवों २ | विषय अच्युत कल्प २,३ सौधर्म कल्प (असुरकुमार-देवों विषय) अच्युत-कल्प सौधर्म-कल्प , सौधर्म कल्प सौधर्म-कल्प (१२)

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