Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पृष्ठ | सूत्र पंक्ति
२ २४३ | १ २४४ .
"
अशुद्ध होते है? वर्तमान नैरयिकों के केवल प्रथम और द्वितीय पृथ्वी
(होते हैं? (वर्तमान नैरयिकों के) (केवल) प्रथम और द्वितीय (-) (दो पृथ्वियों)
१.२
पृथ्वी
पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध २६ सं. गा.१ रत्नप्रभा आदि
(रत्नप्रभा-आदि) " | २ इस उद्देशक में वर्णित है। (इस उद्देशक में वर्णित है)॥४|| २१६ | ३ | उनके
(उनके) | सर्वत्र | समय अधिक
|-समय-अधिक १ नरका-वास
नरकावास १, २ एक समय अधिक
एक-समय-अधिक ४ | एक लोभोपयुक्त
एक लोभोपयुक्त ५ क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मानोप| अथवा लोभोपयुक्त युक्त, अनेक मायोपयुक्त, अनेक
लोभोपयुक्त मानोपयुक्त होते हैं।
अनेक मानोपयुक्त होते हैं। " |७ संख्येय समय अधिक |संख्येय-समय-अधिक असंख्येय समय अधिक
असंख्येय-समय-अधिक | मंग वक्तव्य हैं।
भंग (म. १/२१७) वक्तव्य हैं। २१६ | सर्वत्र प्रदेश अधिक
-प्रदेश-अधिक इनके अस्सी भंग वक्तव्य है। | (इनके) अस्सी भंग (म. १/२१८)
वक्तव्य है - " संख्येय प्रदेश अधिक अधन्य संख्येय-प्रदेश-अधिक जधन्य " |३, ४ वर्तमान नैरयिकों
(वर्तमान नैरयिकों) | ५ | असंख्येय प्रदेश अधिक असंख्येय-प्रदेश-अधिक ६ नरयिकों
(नैरयिकों) -पृथ्वी यावत्
-पृथ्वी में (म. १/२१७) यावत्
(पृथ्वी) " | २ | लेश्या पांचवी पृथ्वी
लेश्या, पांचवी (पृथ्वी) - २, ३ (छठी पृथ्वी में)
(छठी पृथ्वी में) - - (और सातवीं पृथ्वी में) और उससे आगे (सातवीं पृथ्वी में होती है।
(होती है) ||१|| २४५ शीर्षक असुरकुमार आदि का नाना असुरकुमार-आदि का नाना| दशाओं में
|-दशाओं में |" कोषोपयुक्त आदि भंग-पद क्रोधोपयुक्त-आदि-भंग-पद
१ असुरकुमार-वास में रहने वाले असुरकुमारावास में (रहने वाले) "२४५-४६३ उनके
(उनके) २४५/५ वे सब
वि) सभी . ६ अथवा लोभोपयुक्त
अथवा अनेक लोभोपयुक्त " अथवा लोभोपयुक्त मायोपयुक्त । अथवा अनेक लोभोपयुक्त और
अनेक मायोपयुक्त । | ७ |-देवों की
-देव केवल इनका
इतना अन्तर है (इनका) | २४६ १, ४ पृथ्वीकायिक आवासों पृथ्वीकायिक-आवासों २४६-४७ १ | " आवास
- आवास | ३ |से लेकर
(से लेकर) ४ गौतम! क्रोषोपयुक्त
गौतम! (वे) क्रोधोपयुक्त वर्तमान पृथ्वीकायिक जीवों के वर्तमान पृथ्वीकायिक-जीवों के) १ अप्कायिक जीव ज्ञातव्य है। अप्कायिक-जीव भी (वक्तव्य है। * तैजसकायिक और वायुकायिक जीवों तैजसकायिक- और वायुकायिक जीवों
वनस्पतिकायिक जीवों की वक्तव्यता वनस्पतिकायिक-जीव * | पृथ्वीकायिक जीवों के समान हैं। पृथ्वीकायिक-जीवों की भांति (वक्तव्य
पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध
| १, २ | पूर्ण आलापक वक्तव्य है। | (पूर्ण आलापक वक्तव्य है) कोई स्कन्ध
(कोई स्कन्ध) २ क्षेत्र | १ |कोई स्कन्ध
(कोई स्कन्ध) + नहीं करता यावत्
नहीं करता (म.१/२५८-२६६)
यावत् | १ | वक्तव्य है यावत्
| वक्तव्य है (भ.१/२७६, २८०)
यावत् " | एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिक एकेन्द्रिय-जीवों को छोड़कर (पर्ति
पण्णवणा, पद २) यावत् वैमानिकों " | २ |सामान्य-जीव
सामान्य-जीव (म.१/२७६-२८०) २८६ ३ | क्रियाएं हैं। जैसे
(क्रियाएं हैं)। (जैसे | ३ | आलापक चौबीस दण्डक में कहा | आलापक (म.१/२७६-२८५) गया
चौबीस दण्डकों में कहा गया), |४, ५ अधःसिर-इस मुद्रा में अधःसिर (उकडू-आसन की मुद्रा में) | हुई यावत्
हुई (म.१/१०) यावत् २६८१ के साथ सातवें
(के साथ) सातवां | २ | के साथ आगे बताए जाने वाले (के साथ) (आगे बताए जाने वाले) २८ (सं. २ | लेश्या, दृष्टि,
लेश्या ||१||
गा.191
निर्देश है ॥२॥
। ४ | निर्देश है। २६६-१, २ बना?
(बना)?
| (वैक्रिय, तेजस और कार्मण) १ -पृथ्वी यावत्
| (वैक्रिय-, तेजस- और कार्मण-) -पृथ्वी में (म. १/२१६) यावत्
२ | उनके
(उनके) | उनमें
(उनमें) ६१ वर्तमान नैरयिकों के
(वर्तमान नैरयिकों के) २ वे ज्ञानी भी होते हैं (a) ज्ञानी भी होते हैं) " होते हैं। सम्यग्-दृष्टि में (होते हैं)। (सम्यग्-दृष्टि में) | मिथ्या-दृष्टि में
(मिथ्या-दृष्टि में) |-पृथ्वी
-पृथ्वी में (म. १/२१७) १ वर्तमान-नैरयिकों के भी सत्ताईस- (वर्तमान-नैरयिकों के भी सत्ताईस-सत्ताईस भंग
-सत्ताईस भंग)
अधिक भंग विकलेन्द्रिय जीवों जीव नैरयिकों दस द्वार से वक्तव्य हैं, अधिक भंग -विमान तक। सूर्य
१ की गई, उसी
की गई (म.१/२६७-३०१), उसी - लेकर सर्व-काल
लेकर (म.१/२६८-३०१) यावत्
| सर्व-काल ' साथ सर्वकाल
साथ (म.१/२६५-३०१) यावत्
सर्व-काल | १ तक के सब पदों की संयोजना (तक के सब पदों की संयोजना ज्ञातव्य है।
ज्ञातव्य है)। | २ | चले जाएं यावत्
चले जाएं (म.१/२६८-३०१) यावत् | " सर्व-काल यावत्
सर्व-काल (म.१/३०१) यावत् । |१,२|है-इस प्रकार मुनि रोह यावत् है। इस प्रकार कहकर यावत् (मुनि
| संयम और तप से अपने आप को रोह संयम और तप से आत्मा को |भावित करता हुआ
भावित करता हुआ) को 'भन्ते' इस सम्बोधन से को (भ.१/१०) यावत् ('भन्ते' इस संबोधित कर
सम्बोधन से संबोधित कर) ३ | ४. बस और स्थावर प्राणी |४. त्रस- और स्थावर-प्राणी १५ | प्रज्ञप्त है
(प्रज्ञप्त है) १ |ही वैमानिक तक का उपपाद ज्ञातव्य (पूर्ति-पण्णवणा, पद २) यावत्
वैमानिक तक (का उपपाद ज्ञातव्य है)। " | वैमानिक तक ज्ञातव्य है। |(पूर्ति-पण्णवणा, पद २) यावत्
वैमानिक तक (ज्ञातव्य है)।
(अधिक भंग) विकलेन्द्रिय-जीवों -जीव नैरयिकों (म.१/२१६-२४३)/ (दस द्वार से वक्तव्य है), (अधिक भंग) (-विमानों के देव)।
, " ४ २ ,
(वे)
२३८१ मनयोग
मन-योग • P३E-४६, वर्तमान-नैरयिकों के भी सत्ताईस |(वर्तमान-नैरयिकों के भी सत्ताईस मंग वक्तव्य है।
| भंग) (वक्तव्य हैं। नैरयिक साकारोपयुक्त नैरयिका-जीव) क्या साकारोपयुक्त | " १,२ होते है?
(होते हैं? ३२ | २४२ " -पृथ्वी में यावत्
-पृथ्वी में (भ. १/२१७) यावत्
| ३ २६५ ३
अव-भासित वह अपने विषय को
अवभासित (वह) (अपने विषय को)
(६)