Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ११ : उ. १० : सू. १०८,१०९
भगवती सूत्र
अनंत स्पर्श-पर्यव, अनंत संस्थान-पर्यव, अनंत गुरुलघु-पर्यव, अनंत अगुरुलघु-पर्यव हैं। इसी प्रकार तिर्यग्-लोक-क्षेत्र-लोक में, इसी प्रकार ऊर्ध्व-लोक-क्षेत्र-लोक में, इसी प्रकार लोक में। भावतः अलोक में वर्ण-पर्यव नहीं हैं, गंध-पर्यव नहीं हैं, रस-पर्यव नहीं हैं, स्पर्श-पर्यव नहीं हैं, संस्थान-पर्यव नहीं हैं, गुरुलघु-पर्यव नहीं हैं। एक अजीव- द्रव्य का देश है, अगुरुलघु है,
अनन्त अगुरुलघु गुणों से संयुक्त है और सर्वाकाश का अनंत-भाग-न्यून है। लोक का परिमाण-पद १०९. भंते! लोक कितना बड़ा प्रज्ञप्त है? गौतम! यह जम्बूद्वीप द्वीप सब द्वीप-समुद्रों के मध्य अवस्थित है यावत् एक लाख योजन लम्बा चौड़ा है। उसकी परिधि तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, अट्ठाईस धनुष साढे-तेरह-अंगुल-से-कुछ-अधिक है। उस काल और उस समय में छह देव महान ऋद्धि वाले यावत् महासुख वाले जम्बूद्वीप द्वीप में मंदर पर्वत पर मंदर चूलिका को चारों ओर से घेरे हुए खड़े हैं। नीचे चार दिशाकुमारी महत्तरिकाओं ने चार बलिपिण्डों को ग्रहण कर जंबूद्वीप की चारों दिशाओं में बाह्याभिमुख स्थित होकर उन चारों बलिपिण्डों को एक साथ बाहर फेंका। गौतम! प्रत्येक देव उन चार बलिपिण्डों का भूमि के तल पर गिरने से पूर्व शीघ्र ही प्रतिसंहरण करने में समर्थ है। गौतम! उन देवों ने उत्कृष्ट, त्वरित, चपल, चण्ड, जविनी, छेक, सैंही, शीघ्र, उद्भुत और दिव्य देव-गति से प्रस्थान किया। एक देव ने पूर्व दिशा की ओर प्रयाण किया, एक देव ने दक्षिण की ओर प्रयाण किया, एक देव ने पश्चिम की ओर प्रयाण किया, एक देव ने उत्तर की ओर प्रयाण किया। एक देव ने ऊर्ध्व दिशा की ओर प्रयाण किया। एक देव ने अधो दिशा की ओर प्रयाण किया। उस काल और उस समय में एक हजार वर्ष की आयु वाले शिशु का जन्म हुआ। उस शिशु के माता-पिता प्रक्षीण मृत्यु को प्राप्त हुए, फिर भी वे देव लोक का अंत नहीं पा सके। उस शिशु का आयुष्य भी प्रक्षीण हो गया, फिर भी वे देव लोक का अंत नहीं पा सके। उस शिशु की अस्थि-मज्जा प्रक्षीण हो गई। फिर भी वे देव लोक का अंत नहीं पा सके। उस शिशु के सात कुल-वंश (पीढ़ियां) प्रक्षीण हो गए फिर भी वे देव लोक का अंत नहीं पा सके। उस शिशु का नाम-गोत्र प्रक्षीण हो गया फिर भी वे देव लोक का अंत नहीं पा सके। भंते ! उन देवों का गत-क्षेत्र बहुत है? अगत-क्षेत्र बहुत है? गौतम ! गत-क्षेत्र बहुत है, अगत-क्षेत्र बहुत नहीं है। गत-क्षेत्र से अगत-क्षेत्र असंख्येय भाग है और अगत-क्षेत्र से गत-क्षेत्र असंख्येय-गणा है। गौतम! लोक इतना बड़ा प्रज्ञप्त है।
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