Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 493
________________ भगवती सूत्र श. ११ : उ. ११ : सू. ११५-१२१ ग्यारहवां उद्देशक सुदर्शन श्रेष्ठी-पद ११५. उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था - वर्णक । दूति - पलाश चैत्य-वर्णक यावत् पृथ्वी - शिलापट्टक । उस वाणिज्यग्राम नगर में सुदर्शन नाम का श्रेष्ठी रहता था - संपन्न यावत् बहुत जन के द्वारा अपरिभवनीय । श्रमणोपासक, जीव-अजीव को जानने वाला यावत् यथापरिगृहीत तपःकर्म के द्वारा आत्मा को भावित करता हुआ रह रहा था । भगवान् महावीर आए यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी । ११६. सुदर्शन श्रेष्ठी इस कथा को सुनकर हृष्ट-तुष्ट हो गया । उसने स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक, मंगल और प्रायश्चित्त किया, सर्व अलंकार से विभूषित होकर अपने घर से प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर कटसरैया की माला और दाम तथा छत्र को धारण कर, विशाल पुरुष-वर्ग से घिरा हुआ वह वाणिज्यग्राम नगर के बीचोंबीच पैदल चलते हुए निकला, निकलकर जहां दूतिपलाश चैत्य था, जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, वहां आया, वहां आकर पांच प्रकार के अभिगमों के साथ श्रमण भगवान् महावीर के पास गया। (जैसे सचित्त द्रव्यों को छोड़ना, भ. ९ / १४५ ) ऋषभदत्त की भांति वक्तव्यता यावत् तीन प्रकार की पर्युपासना के द्वारा पर्युपासना की । ११७. श्रमण भगवान् महावीर ने उस विशालतम परिषद् में सुदर्शन श्रेष्ठी को धर्म कहा यावत् आज्ञा की आराधना की । ११८. वह सुदर्शन श्रेष्ठी श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्म सुनकर, अवधारण कर हृष्ट-तुष्ट होकर उठने की मुद्रा में उठा । उठकर श्रमण भगवान् महावीर को दायीं ओर से प्रारंभ कर तीन बार प्रदक्षिणा की, प्रदक्षिणा कर वंदन - नमस्कार किया, वंदन - नमस्कार कर इस प्रकार कहा११९. भंते! काल कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? सुदर्शन! काल चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- प्रमाण-काल, यथायुर्निवृत्ति-काल, मरण -काल, अध्वा - काल । १२०. वह प्रमाण-काल क्या है ? प्रमाण-काल दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे दिवस - प्रमाण-काल, रात्रि - प्रमाण - काल । चार प्रहर का दिवस और चार प्रहर की रात्रि होती है। दिन अथवा रात्रि का प्रहर उत्कृष्टतः साढे चार मुहूर्त का होता है । दिवस अथवा रात्रि का प्रहर जघन्यतः तीन मुहूर्त्त का होता है । १२१. भंते! जब दिवस अथवा रात्रि का उत्कृष्टतः साढे चार मुहूर्त्त का प्रहर होता है तब दिवस अथवा रात्रि के मुहूर्त्त भाग का कितना भाग कम होते-होते जघन्यतः तीन मुहूर्त का प्रहर होता है ? जब दिवस अथवा रात्रि का जघन्यतः तीन मुहूर्त्त का प्रहर होता है तब दिवस अथवा रात्रि के मुहूर्त्त भाग का कितना भाग बढ़ते बढ़ते उत्कृष्टतः साढे चार मुहूर्त्त का प्रहर होता है ? सुदर्शन! जब दिवस अथवा रात्रि का उत्कृष्टतः साढे चार मुहूर्त्त का प्रहर होता है तब दिवस ४२३

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