Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 513
________________ भगवती सूत्र : खण्ड १-शुद्धि पत्र सभी शतकों में निम्नांकित शुद्धि सभी जगह पढ़ें अशुद्ध भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार कह कर (भ. १/५१) भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान गौतम श्रमण | भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार कह कर भगवान् गौतम भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करते हैं, वन्दन-नमस्कार कर वे संयम श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करते है, वन्दन-नमस्कार कर वे और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं। | संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए रहते है। संजी-मनुष्य संज्ञी-तिर्यच संजी-नोसंज्ञी भगवान स्थविर भगवान स्थविरों रायपसेणइयं भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है, यावत् भगवान गौतम संयम और भंते! वह ऐसा ही है, भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार कह कर (म.१/५१) तप से आत्मा को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं। | यावत् भगवान् गौतम संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए रहते है।। भंते! वह ऐसा ही है, भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार कह कर (म.१/५१) संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं। यावत् रहते है। भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है-यह कह भगवान गौतम संयम भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार कह कर (म.१/५१) और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहार कर रहे हैं। | यावत् रहते हैं। भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है- इस प्रकार कहते हुए भगवान् भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार कह कर भगवान् गौतम गौतम श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करते हैं। |श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करते हैं। भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान गौतम यावत् भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार कह कर भगवान गौतम संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं। (प.१/५१) यावत् रहते है। भंते! वह ऐसा ही है। मंते! वह ऐसा ही है। भगवान गौतम यावत् विहरण भंते! वह ऐसा ही है। मंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार कह कर भगवान् गौतम कर रहे हैं। (भ.१/५१) यावत् रहते है। संज्ञि-मनुष्य संज्ञि-तिर्यच संज्ञि-नोसंजी स्थविर भगवान स्थविर भगवानों रायपसेणिय उत्कर्षतः वक्तव्यता, इतना है, इतना है, इतना हैं, इतना इतना हैं, इतना अपर्याप्तक पर्याप्तक उच्च-, नीच- और मध्यम-कुलों कोटिकोटि गुणा; संख्येय-गुणा असंख्येय-गुणा अनन्त-गुणा द्विप्रदेशिक त्रिप्रदेशिक चतुः प्रदेशिक संरव्येय-गुणा असंख्येय-गुणा अनन्त-गुणा आंतरायिक श्रुत्वा अश्रुत्वा पंचप्रदेशिक षट्प्रदेशिक सप्तप्रदेशिक अष्टप्रदेशिक नवप्रदेशिक दशप्रदेशिक संख्येयप्रदेशिक असंख्येयप्रदेशिक अनन्तप्रदेशिक वक्तव्यता। केवल इतना है। केवल इतना है, केवल इतना हैं, केवल इतना केवल इतना हैं। केवल इतना अपर्याप्त पर्याप्त उच्च, नीच और मध्यम कुलों कोड़ाकोड़ी अथवा कोड़ाक्रोड गुणा अधिक संख्येयगुणा अधिक असंख्येयगुणा अधिक अनन्तगुणा अधिक द्वि-प्रदेशी त्रि-प्रदेशी चतु-प्रदेशी संख्येयगुण असंख्येय-गुण । अनन्त-गुण अंतराय श्रुत्वाअश्रुत्वापांच-प्रदेशी, पंच-प्रदेशी छह-प्रदेशी, षद्-प्रदेशी सात-प्रदेशी, सप्त प्रदेशी आठ-प्रदेशी नव-प्रदेशी दस-प्रदेशी संख्येय-प्रदेशी असंख्येय-प्रदेशी अनन्त-प्रदेशी भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है, इस प्रकार कह कर भगवान् भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार कह कर (म.१/५१)| गौतम यावत् संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहरण कर | यावत् रहते हैं। रहे हैं। भंते! वह ऐसा ही है, भंते! वह ऐसा ही है, इस प्रकार कह भगवान् गौतम यावत् विहार करते हैं। यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है? यह किस अपेक्षा से? इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है। इस अपेक्षा से। तिर्यक्योनिक अध्चा-काल अध्वासमय केवली-प्रज्ञप्त संजी-जीव भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार कह कर (म.१/५) यावत् रहते हैं। यह किस अपेक्षा से ऐसा कहा जा रहा है? यह किस अपेक्षा से (एसा कहा जा रहा है ? यह इस अपेक्षा से ऐसा कहा जा रहा है। यह इस अपेक्षा से (ऐसा कहा जा रहा है।) तिर्यग्योनिक अद्धाकाल अद्धासमय केवलि-प्रज्ञप्त संज्ञि-जीव

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