Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 499
________________ भगवती सूत्र श. ११ : उ. ११ : सू. १४२, १४३ उस स्वप्न के अर्थ का अवग्रहण किया । अवग्रहण कर एक दूसरे के साथ संचालना की । संचालना कर स्वप्न के अर्थ को स्वयं जाना, अर्थ का ग्रहण किया, उस विषय में प्रश्न किया, विनिश्चय किया, अर्थ को हृदयंगम किया। राजा बल के सामने स्वप्न शास्त्रों का पुनः पुनः उच्चारण करते हुए इस प्रकार कहा- देवानुप्रिय ! हमारे स्वप्न - शास्त्रों में बयांलीस स्वप्न और तीस महास्वप्न हैं-सर्व बहत्तर स्वप्न दृष्ट हैं। देवानुप्रिय ! तीर्थंकर अथवा चक्रवती की माता तीर्थंकर अथवा चक्रवर्ती के गर्भावक्रांति के समय इन तीस महास्वप्नों में से ये चौदह महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं, जैसे हाथी, वृषभ, सिंह, अभिषेक, माला, चंद्रमा, दिनकर, ध्वज, कलश, पद्म- सरोवर, सागर, विमान - भवन, रत्न - राशि, अग्नि । वासुदेव की माता वासुदेव के गर्भावक्रांति के समय इन चौदह महा स्वप्नों में से कोई सात महास्वप्न देखकर जागृत होती है। बलदेव की माता बलदेव के गर्भावक्रांति के समय इन चौदह महास्वप्नों में से कोई चार महास्वप्न देखकर जागृत होती है। मांडलिक राजा की माता मांडलिक के गर्भावक्रांति के समय इन चौदह महास्वप्नों में से कोई एक महास्वप्न देखकर जागृत होती है । देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने इन स्वप्नों में से एक महास्वप्न देखा है, इसलिए देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने उदार स्वप्न देखा है यावत् देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याण तथा मंगलकारी स्वप्न देखा है । देवानुप्रिय ! अर्थ-लाभ होगा। देवानुप्रिय ! भोग-लाभ होगा। देवानुप्रिय ! पुत्र-लाभ होगा । देवानुप्रिय ! राज्य - लाभ होगा । इस प्रकार देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी बहु प्रतिपूर्ण नौ मास और साढे सात दिन-रात व्यतिक्रांत होने पर तुम्हारे कुलकेतु यावत् देवकुमार के समान प्रभा वाले पुत्र को जन्म देगी। वह बालक बाल्य अवस्था को पार कर, विज्ञ और कला का पारगामी बनकर, यौवन को प्राप्त कर शूर, वीर, विक्रांत, विपुल और विस्तीर्ण सेना - वाहन युक्त, राज्य का अधिपति राजा होगा अथवा भावितात्मा अनगार होगा । इसलिए देवानुप्रिय ! (हमारा मत प्रामाणिक है) प्रभावती देवी ने उदार स्वप्न देखा है यावत् प्रभावती देवी ने आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याण और मंगलकारक स्वप्न देखा है। १४३. वह बल राजा स्वप्न- लक्षण - पाठकों से इस अर्थ को सुनकर, अवधारण कर हृष्ट-तुष्ट हुआ। दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली दसनखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमा कर मस्तक पर टिकाकर इस प्रकार बोला - देवानुप्रियो ! यह ऐसा ही है । देवानुप्रियो ! यह तथा (संवादितापूर्ण) है । देवानुप्रियो ! यह अवितथ है । देवानुप्रियो ! यह असंदिग्ध है। देवानुप्रियो ! यह इष्ट है । देवानुप्रियो ! यह प्रतीप्सित है । देवानुप्रियो! यह इष्ट-प्रतीप्सित है। जैसा आप कर रहे हैं, ऐसा भाव प्रदर्शित कर उस स्वप्न के फल को सम्यक् स्वीकार किया । स्वीकार कर स्वप्न - लक्षण - पाठकों का विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, पुष्प, वस्त्र, गंध और माल्यालंकारों से सत्कार किया, सम्मान किया । सत्कार-सम्मान कर जीवन-निर्वाह के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया । प्रीतिदान देकर प्रतिविसर्जित किया । प्रतिविसर्जित कर सिंहासन से उठा । उठकर जहां प्रभावती देवी थी वहां आया। वहां आकर ४२९

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