Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ११ : उ. १० : सू. ११२-११४
भगवती सूत्र ११२. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-लोक के एक आकाश-प्रदेश में जो एकेन्द्रिय-प्रदेश यावत् अन्योन्य-एकीभूत बने हुए हैं, भंते! वे परस्पर किञ्चित् आबाध अथवा व्याबाध उत्पन्न नहीं करते? छविच्छेद नहीं करते? गौतम! जैसे कोई नर्तिका है-मूर्तिमान, शृंगार और सुन्दर वेशवाली, चलने, हंसने, बोलने और चेष्टा करने में निपुण, तथा विलास और लालित्यपूर्ण संलाप में निपुण, समुचित उपचार में कुशल, सुन्दर स्तन, कटि, मुख, हाथ, पैर, नयन, लावण्य, रूप, यौवन और विलास से कलित। वह नर्तिका सैकड़ों (हजारों ?) लाखों लोगों से आकुल नाट्यशाला में बत्तीस प्रकार की नाट्यविधियों में से किसी एक नाट्यविधि का उपदर्शन करती है। गौतम! वे प्रेक्षक अनिमेष दृष्टि से चारों ओर से उस नर्तिका को देखते हैं? हां, देखते हैं। गौतम! वे दृष्टियां उस नर्तकी की ओर चारों ओर से गिर रही हैं? हां, गिर रही हैं। गौतम! वे दृष्टियां उस नर्तकी को किञ्चित् आबाध अथवा व्याबाध उत्पन्न करती हैं? छविच्छेद करती हैं? यह अर्थ संगत नहीं है। वह नर्तकी उन दृष्टियों में किञ्चित् आबाध अथवा व्याबाध उत्पन्न करती है? छविच्छेद करती है? यह अर्थ संगत नहीं है। वे दृष्टियां परस्पर-एक दूसरे की दृष्टि में किञ्चित् आबाध अथवा व्याबाध उत्पन्न करती हैं? छविच्छेद करती हैं? यह अर्थ संगत नहीं है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-लोक के एक आकाश-प्रदेश में जो एकेन्द्रिय-प्रदेश हैं यावत् अन्योन्य-एकीभूत बने हुए हैं, वे परस्पर आबाध अथवा व्याबाध उत्पन्न नहीं करते, छविच्छेद नहीं करते। ११३. भंते! लोक के एक आकाश-प्रदेश में जघन्य-पद में अवस्थित जीव-प्रदेश, उत्कृष्ट-पद में अवस्थित जीव-प्रदेश और सर्व जीव-इनमें कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? गौतम! सबसे अल्प लोक के एक आकाश-प्रदेश में जघन्य-पद में अवस्थित जीव-प्रदेश सबसे अल्प है, सर्व जीव उनसे असंख्येय-गुण हैं, उत्कृष्ट पद में अवस्थित जीव-प्रदेश उनसे विशेषाधिक हैं। ११४. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
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