Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 470
________________ श. १० : उ. ५ : सू. ८२-८९ भगवती सूत्र ८२. भंते! पिशाचराज पिशाचेन्द्र काल के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं? आर्यो! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-कमला, कमलप्रभा, उत्पला, · सुदर्शना। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है। शेष चमर लोकपाल की भांति वक्तव्य है। उसी प्रकार परिवार की वक्तव्यता, इतना विशेष है-काल राजधानी में काल सिंहासन पर, शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार महाकाल की वक्तव्यता। ८३. भंते! भूतराज भूतेन्द्र सुरूप की पृच्छा। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा, सुभगा। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है, शेष काल की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार प्रतिरूप की वक्तव्यता। ८४. भंते! यक्षेन्द्र पुण्यभद्र की पृच्छा। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पुण्या, बहुपुत्रिका, उत्तमा, तारका। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है, शेष काल की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार मणिभद्र की वक्तव्यता। ८५. भंते! राक्षसेन्द्र भीम की पृच्छा। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पद्मा, वसुमती, कनका, रत्नप्रभा। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है, शेष काल की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार महाभीम की वक्तव्यता। ८६. किन्नर की पृच्छा। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अवतंसा, केतुमती, रतिसेना, रतिप्रिया। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है, शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार किंपुरुष की वक्तव्यता। ८७. सत्पुरुष की पृच्छा। आर्य ! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-रोहिणी, नवमिका, ह्री, पुष्पवती। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है, शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार महापुरुष की वक्तव्यता। ८८. अतिकाय की पृच्छा। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-भुजगा, भुजगवती, महाकक्षा, स्फुटा। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है, शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार महाकाय की वक्तव्यता। ८९. गीतरति की पृच्छा। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सुघोषा, विमला, सुस्वरा, सरस्वती। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है, शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार गीतयश की वक्तव्यता। इन सबकी काल की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-राजधानी और सिंहासन सदृश नाम वाले हैं, शेष पूर्ववत्। ४००

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