Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १० : उ. ५ : सू. ६८-७४
जो असुरकुमारराज असुरेन्द्रचमर तथा अन्य बहुत असुरकुमार देव - देवियों के लिए अर्चनीय, वंदनीय, नमस्करणीय, पूजनीय, सत्कारणीय, सम्माननीय, कल्याणकारी, मंगल, दैवत, चैत्य और पर्युपासनीय होती है । आर्यो ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - असुरकुमारराज असुरेन्द्रचमर चमरचंचा राजधानी की सुधर्मा सभा में, चमर सिहांसन पर अंतःपुर के साथ दिव्य भोगाई भोगों को भोगते हुए विहरण करने में समर्थ नहीं है ।
६९. आर्यो! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर चमरचंचा राजधानी की सभा सुधर्मा में चमर सिंहासन पर चौसठ हजार सामानिक, तैतीस त्रायस्त्रिंशक, चार लोकपाल, पांच अग्रमहिषियां, सपरिवार चौसठ हजार आत्मरक्षक - देव, अन्य बहुत असुरकुमार - देव और देवियों के साथ संपरिवृत है । वह आहत नाट्यों, गीतों तथा कुशल वादक के द्वारा बजाए गए वादित्र, तंत्री, तल, ताल, त्रुटित घन और मृदंग की महान् ध्वनि से युक्त दिव्य भोगाई भोगों को भोगता हुआ रहता है।
केवल परिचारणा (शब्द-श्रवण, रूप-दर्शन ) - ऋद्धि का उपभोग करते हैं, मैथुन - रूप भोग का नहीं ।
७०. भंते! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के लोकपाल महाराज सोम के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं ?
आर्य ! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे- कनका, कनकलता, चित्रगुप्ता, वसुंधरा । उनमें से प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी परिवार प्रज्ञप्त है । यह है अंतःपुर की वक्तव्यता । ७१. क्या एक देवी अन्य एक हजार देवी - परिवार की विक्रिया करने में समर्थ है ?
हां, है । इसी प्रकार पूर्व - अपर सहित चार हजार देवी - परिवार विक्रिया करने में समर्थ है। ७२. भंते! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के लोकपाल महाराज सोम सोम राजधानी की सुधर्मा सभा में सोम सिंहासन पर अंतःपुर के साथ दिव्य भोगाई भोगों को भोगते हुए विहरण करने में समर्थ हैं ?
अवशेष चमर की भांति वक्तव्य है, इतना विशेष है - परिवार सूर्याभदेव की भांति (रायपसेणइय ७) वक्तव्य है। शेष पूर्ववत् यावत् मैथुन - रूप भोग का नहीं ।
७३. भंते! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के लोकपाल महाराज यम के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं ?
पूर्ववत्, इतना विशेष है - यम राजधानी में शेष सोम की भांति वक्तव्यता । इसी प्रकार वरुण की वक्तव्यता, इतना विशेष है- वरुण राजधानी में । इसी प्रकार वैश्रमण की वक्तव्यता, इतना विशेष है - वैश्रमण राजधानी में। शेष पूर्ववत् यावत् मैथुन-रूप भोग का नहीं ।
७४. भंते! वैरोचनेन्द्र बलि की पृच्छा ।
आर्यो! पांच अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे- शुंभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा, मदना । उनमें से प्रत्येक देवी के आठ-आठ हजार देवी का परिवार प्रज्ञप्त है। शेष चमर की भांति वक्तव्य है, इतना विशेष है - बलिचंचा राजधानी में, परिवार की मोक - उद्देशक ( भगवई ३/४) की भांति वक्तव्यता। शेष पूर्ववत् यावत् मैथुन-रूप भोग का नहीं ।
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