Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १० : उ. ५-३४ : सू. ९७-१०३
भगवती सूत्र यावत् वरुण की वक्तव्येता, इतना विशेष है-विमान चतुर्थ शतक (४/२-४) की भांति वक्तव्य है, शेष पूर्ववत् यावत् मैथुन-रूप भोग का नहीं। ९८. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
छठा उद्देशक
सुधर्मा सभा-पद ९९. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र की सुधर्मा सभा कहां प्रज्ञप्त है?
गौतम! जम्बूद्वीप द्वीप में मंदर पर्वत के दक्षिण भाग में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुत सम और रमणीय भूभाग से ऊर्ध्व में स्थित है, इस प्रकार रायपसेणइय (सू. १२४-१२५) की भांति वक्तव्यता यावत् पांच अवतंसक प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अशोकावतंसक, सप्त-पर्णावतंसक, चंपकावतंसक, चूतावतंसक, मध्य में सौधर्मावतंसक है। वह सौधर्मावतंसक महाविमान साढ़े बारह लाख योजन लंबा चौड़ा है, इस प्रकार जैसे सूर्याभ की वक्तव्यता वैसे ही उसके मान
और उपपात की वक्तव्यता। शक्र का अभिषेक सूर्याभ (रायपसेणइय सूत्र १२५) की भांति वक्तव्य है। अलंकार अर्चनिका यावत् आत्मरक्षक सूर्याभ की भांति वक्तव्य हैं। शक्र की स्थिति दो सागरोपम प्रमाण है। शक्र-पद १००. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र कितनी महान् ऋद्धि वाला यावत् कितने महान् सुख वाला
गौतम! वह महान् ऋद्धि वाला यावत् महान् सुख वाला है। वह बत्तीस लाख विमानावास यावत् दिव्य भोगार्ह भोगों को भोगता हुआ विहरण करता है। वह देवराज देवेन्द्र शक्र इतनी
महान् ऋद्धि वाला यावत् इतने महान् सुख वाला है। १०१. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
७-३४वां उद्देशक
अन्तरद्वीप-पद १०२. भंते! उत्तर दिशा में एक पैर वाले मनुष्यों का एकोरूक द्वीप कहां प्रज्ञप्त है? इस प्रकार जैसे जीवाजीवाभिगम की वक्तव्यता वैसे ही निरवशेष वक्तव्य है यावत् शुद्धदंत द्वीप की वक्तव्यता। ये अट्ठाइस उद्देशक वक्तव्य हैं। १०३. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है, यावत् भगवान् गौतम संयम और तप से
आत्मा को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं।
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