Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. ९ : सू. ३९२-३९९
-प्रयोग-बंध की वक्तव्यता । इसी प्रकार रत्नप्रभा - पृथ्वी - नैरयिक यावत् अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत वैमानिक की वक्तव्यता ।
३९३. भंते! वैक्रिय शरीर प्रयोग-बंध काल की अपेक्षा कितने काल का है ?
गौतम ! सर्व-बंध जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः दो समय है। देश बंध जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः एक समय- न्यून - तैतीस सागरोपम है ।
३९४. वायुकायिक- एकेन्द्रिय- वैक्रिय शरीर प्रयोग-बंध के कालमान की पृच्छा ।
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गौतम! सर्व-बंध एक समय, देश-बंध जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः अंतर्मुहूर्त है। ३९५. रत्नप्रभा - पृथ्वी - नैरयिक- वैक्रिय - शरीर प्रयोग-बंध के कालमान की पृच्छा ।
गौतम! सर्व-बंध एक समय, देश बंध जघन्यतः तीन समय- न्यून - दस हजार वर्ष, उत्कृष्टतः एक समय- न्यून - सागरोपम है। इसी प्रकार यावत् अधः सप्तमी की वक्तव्यता, इतना विशेष है - देश -बंध में जिसकी जो जघन्य स्थिति है, उसमें तीन समय न्यून कर देना चाहिए यावत् उत्कृष्टतः उसमें एक-समय न्यून कर देना चाहिए ।
पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक और मनुष्यों की वायुकायिक की भांति वक्तव्यता। असुरकुमार, नागकुमार यावत् अनुत्तरोपपातिक देवों की नैरयिक की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है - जिसकी जो स्थिति है, वह वक्तव्य है यावत् अनुत्तरोपपातिक - देवों के सर्व-बंध एक समय, देश-बंध जघन्यतः तीन समय- न्यून - इकत्तीस सागरोपम, उत्कृष्टतः एक-समय- न्यून- तैतीस सागरोपम I
३९६. भंते! वैक्रिय - शरीर-प्रयोग के बंध का अंतर काल की अपेक्षा कितने काल का है ? गौतम! सर्व-बंध का अंतर जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः अनंतकाल - अनंत- अवसर्पिणी- उत्सर्पिणी काल की अपेक्षा, क्षेत्र की अपेक्षा अनंत लोक असंख्येय पुद्गल परिवर्त, वे पुद्गल-परिवर्त आवलिका के असंख्यातवें भाग जितने हैं । इसी प्रकार देश बंध के अंतर की
वक्तव्यता ।
३९७. वायुकायिक-वैक्रिय शरीर प्रयोग-बंध के अंतर की पृच्छा ।
गौतम ! सर्व-बंध का अंतर जघन्यतः अंतर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः पल्योपम का असंख्यातवां - भाग है । इसी प्रकार देश बंध के अंतर की वक्तव्यता ।
३९८. तिर्यग्योनिक-पंचेन्द्रिय- वैक्रिय शरीर प्रयोग-बंध के अंतर की पृच्छा ।
गौतम! सर्व-बंध का अंतर जघन्यतः अंतर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः पृथक्त्व - पूर्व-कोटि है । इसी प्रकार देश - बंध के अंतर की वक्तव्यता । इसी प्रकार मनुष्य वैक्रिय शरीर प्रयोग-बंध के अंतर की
वक्तव्यता ।
३९९. भंते! वायुकायिक-जीव नो-वायुकायिक में जन्म लेकर पुनः वायुकायिक में जन्म लेता है । उस अवस्था में वायुकायिक- एकेन्द्रिय- वैक्रिय- शरीर प्रयोग-बंध के अंतर की पृच्छा । गौतम ! सर्व-बंध का अंतर जघन्यतः अंतर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः अनंतकाल - वनस्पति - काल है । इसी प्रकार देश -बंध के अंतर की वक्तव्यता ।
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