Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ९ : उ. ३२ : सू. ८१-८९ गांगेय! पृथ्वीकायिक अंतर-सहित उपपन्न नहीं होते, निरंतर उपपन्न होते हैं। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक की वक्तव्यता।।
द्वीन्द्रिय यावत् वैमानिक नैरयिक की भांति वक्तव्य हैं। ८२. भंते ! नैरयिक अंतर-सहित उद्वर्तन करते हैं ? निरंतर उद्वर्तन करते हैं? गांगेय! नैरयिक अंतर-सहित भी उद्वर्तन करते हैं और निरंतर भी उद्वर्तन करते हैं।
इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता। ८३. भंते! पृथ्वीकायिक अंतर-सहित उद्वर्तन करते हैं?-पृच्छा।
गांगेय! पृथ्वीकायिक अंतर-सहित उद्वर्तन नहीं करते, निरंतर उद्वर्तन करते हैं। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक अंतर-सहित उद्वर्तन नहीं करते, निरन्तर उद्वर्तन करते
हैं।
८४. भंते! द्वीन्द्रिय अंतर-सहित उद्वर्तन करते हैं? निरंतर उद्वर्तन करते हैं?
गांगेय! द्वीन्द्रिय अंतर-सहित भी उद्वर्तन करते हैं, निरंतर भी उद्वर्तन करते हैं। इसी प्रकार यावत् वाणमंतर की वक्तव्यता। ८५. भंते! ज्योतिष्क अंतर-सहित च्युत होते हैं?-पृच्छा। गांगेय! ज्योतिष्क अंतर-सहित भी च्युत होते हैं और निरंतर भी च्युत होते हैं। इसी प्रकार
वैमानिक की वक्तव्यता। प्रवेशन-पद ८६. भंते! प्रवेशनक कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गांगेय! प्रवेशनक चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-तैरयिक-प्रवेशनक, तिर्यकायोनिक-प्रवेशनक, मनुष्य-प्रवेशनक और देव-प्रवेशनक। ८७. भंते! नैरयिक प्रवेशनक कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गांगेय! सात प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे–रत्नप्रभा-पृथ्वी-नैरयिक-प्रवेशनक यावत्
अधःसप्तमी-पृथ्वी-नैरयिक-प्रवेशनक । ८८. भंते! एक नैरयिक नैरयिक-प्रवेशनक में प्रवेश करता हुआ क्या रत्नप्रभा में होता है? शर्कराप्रभा में होता है? यावत् अधःसप्तमी में होता है? गांगेय! रत्नप्रभा में होता है यावत् अधःसप्तमी में होता है। ८९. भंते! दो नैरयिक नैरयिक-प्रवेशनक में प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं? यावत्
अधःसप्तमी में होते हैं? गांगेय ! रत्नप्रभा में होते हैं यावत् अथवा अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में होता है, अथवा एक रत्नप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में होता है यावत् एक रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तमी में होता है। अथवा एक
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